Tuesday, September 17, 2024
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डॉ अंशुला गर्ग की कविताएँ

1
पूछती हूँ तुमसे,
आखिर, किस आधार पर मुझे अबला, बेचारी कहते हो,
आखिर, किस आधार पर मुझे कमजोर समझा जाता है,
आखिर क्या है, तुममें,जो मैंने नहीं कर दिखाया है,
पूछती हूँ तुमसे, क्या अलग है तुममें और मुझमें,
फिर भी क्यों समान अधिकार की लड़ाई लड़नी पड़ती है मुझे,
इतने मुकाम हासिल करने के बाद भी,
बराबरी का कार्य करने के बाद भी,
क्यों तुम्हारी नजरें मुझे वो सम्मान, इज्जत नहीं देती,
भगवान ने दोनों को एकदूसरे का पूरक बनाया है,
आखिर क्यों, ये समाज फिर भी वो दर्जा नहीं देता,
आखिर क्यों, ये समाज स्त्री को कमजोर
और पुरुष को बलवान समझता है,
बताओ तो सही,
जवाब दो तो सही,
क्यों, तुम्हारी सोच आज भी वैसी की वैसी कुंठित सी है,
क्यों, लड़की की आखिरी मंजिल शादी माना जाता है,
और लड़के का अपने पाँव पर खड़ा होना,
काहे नहीं सोचते हो, लड़की भी अपना वजूद ढूँढे,
सरकार ने कर दिया बहुत कुछ महिलाओं के लिए,
लेकिन उससे क्या होगा,
पूछती हूँ तुमसे, तुम्हारी सोच कब बदल रही है,
कब करोगे शुरू बराबरी का सम्मान करना…
2
नमन उन वीर शहीदों को
नमन उनकी वीर शहादत को
जिन्होंने मां भारती के नाम
अपना सर्वस्व बलिदान किया
नमन उन वीर सपूतों को
नमन उनकी शूरवीर्ता को
जिन्होंने मां भारती के नाम
खुद को समर्पित किया
नमन उन क्रांतिकारियों को
नमन उनकी क्रांति को
जिन्होंने मां भारती के नाम
अपना सर्वस्व त्याग दिया
नमन उन माताओं को
नमन उनकी ममता को
जिन्होंने मां भारती के
उन वीर सपूतों को
जन्म दे देश के नाम किया
नमन उस मातृ भूमि को
नमन उस भूमी की मिट्टी को
जिसमें ऐसे वीर जवानों ने जन्म लिया
और दुश्मनों को छक्के छुड़ा दिए
नमन है वीर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को
जिन्होंने इंकलाब का नारा लगा
अंग्रेजों को धूल चटा
देश की खातिर
हंसते हंसते फांसी की फंदे की चूम लिया ।
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5 टिप्पणी

  1. अच्छी कविताएं हैं आपकी दोनों ही और बहुत सामायिक है । नारी अबला नहीं सबला है, लेकिन जब पुरुष राक्षस बन के टूट पड़ें तो क्या करें ?
    पंखों को उड़ान देने के बाद भी अगर कोई शिकारी शिकार कर ले तो पक्षी बेचारा क्या करें? बस कुछ इसी तरह की स्थिति है नारियों की!
    देश और देश के सैनिकों के लिए जितना भी कहा जाए उतना ही कम है जिस तरह अपन मां के लिए कहते हैं।
    बेहतरीन कविताओं के लिए आपको बहुत-बहुत बधाइयां।

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