Saturday, September 21, 2024
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हरदीप सबरवाल की पांच कविताएँ

 1 – युद्ध के बीज
उपहार में मिलते हैं,
छोटी लड़कियों को गुड़ियाएं,
और नन्हे लड़को को बंदूक के खिलौने,
फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता में
नन्ही बच्चियां सजती है परियां बन,
और नन्हे बच्चे फाैजी पोशाक में,
और दुनिया
युद्ध के कारणों को जानने के लिए
विमर्श में मशरूफ है….
2 – ताकि बचे रहे
स्त्रियों के भीतर अगर बची रही हैं स्त्रियां,
तो उन स्त्रियों की वजह से नहीं
जिन्होंने पवित्रता की परीक्षा देना स्वीकार किया,
और पुरुषों के भीतर भी बचे रहे पुरुष
उन पुरुषों की वजह से नहीं जो तय करते रहे
तमाम मानक और कसौटियां,
मिथकों और मर्यादाओं को तोड़ने वाले तमाम स्त्री और पुरुष
कितने टूटे, कितने बचे या कितने खड़े हुए बलिवेदी पर,
पर वे ही तो थे, हां वे ही
जिन्होंने ने बचाए रखी बंधनों से मुक्त जीने की चाह,
और तमाम स्त्री-पुरुषों के अंदर बसते स्त्री पुरुष…..
3 – गति
सुख की चाल तीव्र,
दुख तय करता सफर मद्धम कदमों से,
इंतजार कछुए सा धीमा
मन को ही
इनकी की गति से
तारतम्य बिठाना पड़ता…..
4 – प्रेमी
सिर्फ वो ही प्रेम में नहीं होते,
जो किसी व्यक्ति से प्रेम करते हैं,
जिन्हें प्रेम पत्र लिखना आता है,
वो भी प्रेम में गहरे डूबे होते हैं…
5 – बारिश
हर बार
बारिश की बूंदे
हर एक प्यास बुझा पाने में
नहीं होती सक्षम
फिर भी
हर एक प्यास को
इंतजार रहता है
हमेशा ही
अपनी अपनी बारिश का….
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