Tuesday, September 17, 2024
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शन्नो अग्रवाल की दो कविताएँ

1. माँ
वसुधा जैसी सहनशीलता
निर्मल जल की शीतलता
बच्चों को मिलता संबल
बसती है उसमें ममता।
निश्छलता की मूरत और
ममता का ऐसा सागर है
जल से कभी न खाली हो
प्यार भरी वह गागर है।
दुनिया भर की दौलत वह
बस अपने बच्चों में देखे
रमकर उनकी ख़ुशियों में
वह अपनी आँखों को सेंके।
छिपकर माँ के आँचल में
बच्चों को संबल मिलता
प्यार भरी झिड़की खाने को
रहती उनको को आतुरता।
चेहरे खिल उठते बच्चों के
माँ के पैरों की आहट से
खुद भूखी रहकर भी वह
जीती है उनकी चाहत से।
जिससे जीवन चले निरंतर
सृष्टि की ऐसी रचना है
ख़ुशियों की बदली बन बरसे
जीवन की वह रसना है l
2. प्रेम की पराकाष्ठा
सुबह-सुबह एक चिड़िया
कहीं से उड़ती-उड़ती
बर्फीली हवाओं से लड़ती
अपने भीगे पंख समेटकर
बगीचे में ठिठुरती
इधर-उधर फुदकने लगी
और बहुत बेचैनी से
खाना ढूँढने की कोशिश में
बर्फ को कुरेदने लगी
शायद अपने बच्चों को कहीं
किसी नीड़ में छिपाकर
बाहर न आने को कहकर
यहाँ कितनी आस और
आत्म विश्वास से आई है
हर झाड़ में जाकर देखती है
कभी पत्तों के नीचे तो कभी
बर्फ में कुरेद के टटोलती है
सोचती हूँ आज क्रिसमस है
तो शायद कुछ खास
खाना लेने आई होगी
अपने नीड़ को कुछ और
तिनकों से सजाया होगा
कुछ और मजबूत बनाया होगा
बच्चों को भी दिलासा दी होगी
कुछ खास खाना खिलाने की
पंछियों में भी तो क्षमता होती है
माँ में भी कितनी ममता होती है
इतनी देर से ढूँढ कर भी
ना वह दिखती है थकी
ना ही और ढूँढने से रुकी
अब उस कोने में कुरेद रही है
जहाँ कल मैंने कुछ ब्रेड के
टुकड़े फेंके थे
लगता है जैसे
उसे वहाँ से कुछ मिल गया हो
चूँ-चूँ कर खुशी जताती है
अपनी चोंच में कुछ दबाती है
और जोर से पँख फड़फड़ा कर
कुछ उड़ान भरकर
जरा सा डगमगाती है
फिर गिरे हुये टुकड़ों को
चोंच में उठाकर उड़ जाती है
मुझे कुछ देर बाद एक
ख्याल आता है कि अब वह
शायद अपने बच्चों के पास
पहुँचने ही वाली होगी
और उसके बच्चे माँ की
आहट पाकर ख़ुशी से
चूँ-चूँ कर शोर मचायेंगे
और उससे चिपक जायेंगे
जब माँ उनको खाना देगी
तो खाने के टुकड़ों पर
छीना-झपटी भी होगी पर
एक अनोखी तृप्ति का
अहसास माँ को प्रेरित करेगा
उन्हें सब खाना खिलाकर
खुद बिना खाये सो जायेगी
पर बच्चों को नहीं बतायेगी
एक दिन यही बच्चे
बड़े होकर उसे छोड़ जायेंगे
कहीं और जाकर बस जायेंगे
वह ये सब जानते हुये भी
अपने बच्चों को प्यार करती है
क्योंकि….
वह एक माँ है….इसलिये
और एक माँ के प्रेम में
आस्था होती है
कोई पराकाष्ठा नहीं होती l
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2 टिप्पणी

  1. माँ की भूमिका किन्हीं शब्दों में वर्णित नहीं की जा सकती फिर भी शन्नो अग्रवाल जी ने सुंदर कविताएँ प्रस्तुत की है । “जीवन की वह रसना है “ बहुत सुंदर । और एक चिड़िया कितनी मेहनत से बच्चों को बड़ा करती है और एक दिन बच्चे उड़ जाते हैं उसे छोड़कर , सत्य है और बहुत दुख भी होता है ।अपनी बात को सरल शब्दों में पाठक तक पहुँचाया है । शन्नो जी बहुत साधुवाद

  2. आपकी दोनों ही कविताएँअच्छी है शन्नो जी! कविता माँ पर हो और वह कविता अच्छी ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता।
    कितनी खूबसूरत पंक्तियाँ हैं माँ पर-

    “जिससे जीवन चले निरंतर
    सृष्टि की ऐसी रचना है
    ख़ुशियों की बदली बन बरसे
    जीवन की वह रसना है l”

    मातृत्व का भाव तो हर प्राणी में होता है।पंछियों में भी होता है। निस्वार्थ भाव माँ के जितना और किसी में नहीं होता।
    “एक दिन यही बच्चे
    बड़े होकर उसे छोड़ जायेंगे
    कहीं और जाकर बस जायेंगे
    वह ये सब जानते हुये भी
    अपने बच्चों को प्यार करती है
    क्योंकि….
    वह एक माँ है….इसलिये
    और एक माँ के प्रेम में
    आस्था होती है
    कोई पराकाष्ठा नहीं होती l”

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