Sunday, September 8, 2024
होमहलचलविजय विक्रांत का संस्मरण - चलो एक बार फिर से...!

विजय विक्रांत का संस्मरण – चलो एक बार फिर से…!

भारत छोड़े हुये एक लम्बा अरसा हो गया है। कैसे ज़िन्दगी का एक बहुत बड़ा हिस्सा यहां कैनेडा में गुज़ार दिया, इसका कोई अंदाज़ा ही नहीं रहा। वक्त गुज़रता गया और इसी के साथ साथ ज़िन्दगी की गाड़ी ने भी अपनी रफ़तार तेज़ करनी शुरू करदी। तेज़ी का, यह न रुकने वाला आलम, हमेशा से ही अपनी भरपूर जवानी पर रहा है।
फिर भी न जाने क्यों, दिल के किसी कोने में, पुरानी यादों के आगोश में जा कर गुम हो जाने के लिये तबियत बेचैन रहती है। वो यादें जो कभी हकीकत हुआ करती थीं आज उन्हीं को तरोताज़ा करने को जी कर रहा है। जाने अंजाने में आज आपको भी अपने इस सफ़र में मैं ने अपना हमसफ़र बना ही लिया है।
चलो, आज ज़िन्दगी की तेज़ रफ़तार को कीली पर टांग कर और कुछ आहिस्ता करके जीने का मज़ा लिया जाये। यही वो तेज़ रफ़तार है जिसकी वजह से हम ख़ुदा की बख़्शी हुई नियामनतों से महरूम हो गये हैं। (ईश्वरिय वरदानों से वंचित रह गये हैं)
चलो, एक बार थोड़ी देर के लिये बच्चे क्यों न बन जायें। याद करें उन लम्हों को जब मुहल्ले के मैदान में दोस्तों के साथ गिल्ली डण्डा, पिठ्ठू, कबड्डी और कंचों से खेला करते थे। खुले आस्मान में पतंगें उड़ाया करते थे और बारिश में झूम झूम के नाचते, गाते और नहाते थे। यही नहीं, बारिश के बहते पानी में हम अपनी अपनी कागज़ की किश्तियां भी तैराया करते थे।
चलो, एक बार पशु पक्षियों के बीच में जाकर चिड़ियों की चहचहाहट, कोयल की कूक, कबूतरों की गुटरगूं, मुर्गों की बांग, कौओं की कौं कौं, कुत्तों की भौं भौं, गऊओं के रंभाने और घोड़ों के हिन्हिनाने में जो एक छुपा हुआ संगीत है उसे बड़े ग़ौर से ध्यान लगाकर सुनें। यही नहीं मोर को नाचता, ख़रगोशों को फुदकता और हिरनों को उछलता देखकर क्यों ना हम भी आज एक ठुमका लगायें।
चलो, एक बार खेतों में जाकर माटी की सुगन्ध, सरसों के पीले फूलों की चादर, गेहूं की बालियां, बाजरे का सिट्टा, ज्वार और मक्की के भुट्टों में कुदरत का करिश्मा देखें।
चलो, एक बार फिर से उन्हीं खेतों में जाकर हल जोतते हुये किसान, बैलों का कुयें से पानी निकालते हुये रहट की कूं कूं, क्यारियों में पानी का चुपचाप गुमसुम बहना और पास के तालाब में तैरती हुई मछलियों के नाच को सराहें।
चलो, एक बार फिर से वो पुस्तकें पढ़ें जिन पर बुकशैल्फ़ में रखे रखे धूल जम गई है। गुम जायें उन ख़्यालों में जब इन्हीं किताबों की सोहबत में वक्त का पता ही नहीं चलता था। याद करें अमीर ख़ुसरो, मिर्ज़ा ग़ालिब, बुल्ले शाह, वृन्दावन लाल वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंशराय बच्चन, धर्मवीर भारती, महीप सिंह, भीशम साहनी और बहुत सारे दिग्गज लेखकों को जिन्होंने अपने साहित्य की सारी दुनिया में एक बहुत बड़ी छाप छोड़ दी है।
चलो, एक बार फिर से याद करें उन दिनों को जब फ़ौन्टेन पैन या फिर स्याही वाली दवात और कलम से लिखाई किया करते थे और स्याही को सुखाने के लिये ब्लाटिंग पेपर का इस्तैमाल होता था। कभी कभी तो इसी स्याही से किताबें और हाथ पैर काले नीले हो जाते थे। कैसे भूल सकते हैं उन लम्हों को जब फ़ौन्टेन पैन लीक कर जाता था और जेब के ऊपर दुनिया का नक्शा बन जाता था।
चलो, एक बार फिर से छत पर जाकर बिस्तर के ऊपर पानी का छिड़काव किया जाये। उसके बाद सफ़ेद चादर ओढ़ कर लम्बी तान कर सोया जाये।  
चलो, एक बार फिर से कुछ दोस्तों को साथ लेकर बस्ती से दूर पटेल पार्क में जाकर पिकनिक मनाई जाये। यादों की दुनिया को तरोताज़ा करते हुये दौराहा जाये उन लम्हों को जब ठण्डा करने के लिये देसी आमों को पानी की भरी हुई बाल्टी में डाला जाता था और देसी आम चूसने का मज़ा ही कुछ और होता था।
चलो, एक बार फिर से शहर के कोलाहल से दूर, पास वाले गांव में तालाब किनारे बैठा जाये। वहां पर पानी में ठीकरों को ऐसे फैंका जाये कि वो तैरते नज़र आयें। पत्थरों पर बैठकर पैरों को पानी में डालकर ठण्डा किया जाये। आसपास के खेतों में हल चलाते हुये किसान से कुछ अपने दिल की बात कही जाये और कुछ उसकी सुनी जाये। मौका मिले तो सर्सों के साग और मक्की की रोटीयों के ज़ायके का भी लुत्फ़ उठाया जाये।
चलो एक बार फिर से उन वाईनल रिकार्डों को, जिन्हें याद करके सुनना तो दूर रहा हाथ लगाये हुये भी एक बहुत लम्बा अरसा हो गया है, बड़ी मुद्दतों के बाद सुना जाये । इसी बहाने कुछ देर के लिये अपने आपको के.एल.सैगल, पंकज मलिक, लता मंगेशकर, सी.एच.आत्मा, बेग़म अख़्तर, किशोर कुमार, महेन्द्र कपूर, सचिन्देव बर्मन, आशा भोंसले, शान्ति हीरानन्द, शमशाद बेग़म, कमल बारोत, सुधा मल्होत्रा, ज़ोहरा बाई अम्बाला, मुकेश, मुहम्मद रफ़ी, जगजीत सिंह, तलत महमूद, गीता दत्त, रहमत कव्वाल, शंकर शंभू कव्वाल, यूसफ आज़ाद, रशीदा ख़ातून, नुसरत फ़तेह अली ख़ान, सी. रामचन्द, हेमन्त कुमार, नूर जहां और सुरैया जैसे फ़नकारों के भूले बिसरे सदाबहार गीतों के आनन्द में डुबो दिया जाये। 
काश; ज़िन्दगी की इस दौड़ धूप में यह सब मुमकिन हो पाता और हमें गुज़रे हुये दिनों के साथ थोड़ा वक्त गुज़ारने का मौका मिलता। 
इन ख़ुशगवार पुरानी यादों के साथ साथ ज़िन्दगी का एक बहुत बड़ा कड़वा सच भी जुड़ा हुआ है। कुछ यादें को तो हम हमेशा हमेशा के लिये भुला देना चाहते हैं। ऐसी यादों के लिये तो यही कहना वाजिब होगा।
भूली हुई यादो, मुझे इतना न सताओ,
अब चैन से रहने दो, मेरे पास न आओ।

विजय विक्रांत
टोरंटो, कनाडा
फ़ोन – +1 (416) 846-6860
RELATED ARTICLES

2 टिप्पणी

  1. आदरणीय विजय जी!
    अच्छा संस्मरण लिखा है आपने और उम्र के उस दौर में जिन-जिन चीजों को आपने याद किया वह सब याद भी आए हालांकि कुछ चीजें हमारे जीवन का हिस्सा नहीं रहीं, लेकिन किसी के जीवन का हिस्सा तो रहीं ।
    हमने अपनी एक संस्मरण की किताब में अपने उस समय को बखूबी लिखा।
    पर हम अपने जीवन के सबसे खूबसूरत लम्हों को भूलना क्यों चाहें? हम तो बहुत खुश होते हैं उस समय को याद करके।
    हमें यह गाना आनंदित करता है।
    बचपन के दिन भी क्या दिन थे
    उड़ते फिरते तितली बन, के बचपन!
    बचपन की उन यादों को खुशी-खुशी याद करना चाहिए तो तकलीफें स्वत:दूर हो जाएँगी।
    जीवन की हर अवस्था अपने-अपने हिसाब से अपना-अपना जीवन जीती है। भविष्य के सुनहरे स्वप्न को संजोने में अपनी युवा अवस्था के उन्माद में हम इतनी तीव्र गति से भागते हैं की पीछे का सब भूल ही जाता है और जब आगे बढ़ने के बाद पीछे मुड़ते हैं तब समझ आता है कि हमने क्या पाया और क्या खोया।
    आप खुश हुई है और मुस्कुराइए! मुस्कुराइए की आप अपनी यादों को लिख पा रहे हैं। अपने दुख को बाँट पा रहे हैं। सोचिए कि जो लिख नहीं पाते हैं वह कितने दुखी होते होंगे। ना उनके दुख को कोई सुनने वाला होगा, न ही वह अपना दुख लिखकर बाँट सकते। बाँटने से कम जो हो जाता है। इस तरह हर पल उनका दुख और गहराता जाता है इस दुख के साथ जीते हुए उसके साथ ही इस दुनिया से चले भी जाते हैं।
    इन मधुर यादों के लिए आपको शुभकामनाएँ ।
    पुनश्च:
    अंत में एक बात और। एक मुस्कुराती सी फोटो जरूर खिंचवाइये।

    • नीलिमा जी: आपको संस्मरण पसन्द आया, बहुत बहुत आभार। यहाँ एक बात ज़रूर कहना चाहूँगा कि यादों की यादगार की इन यादों को याद करके जो सकून मिलता है उसको शव्दों में ब्यान नहीं किया जा सकता। केवल महसूस किया जाता है। बहुत बहुत धन्यवाद।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest