Sunday, September 8, 2024
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बिमल सहगल का व्यंग्य – पेपर लीक किस्से नये-पुराने

पसीने  से तर, चंद्रकांत जब सुबह की सैर से लौटे तो गुसलखाने में मुंह-हाथ धो, सीधे रसोईघर गए और एक ग्लास ठंडे पानी से प्यास बुझा, गैस पर दो कप चाय चढ़ा दी।  बेडरूम में चाय का कप पत्नी, अंजना के लिए साइड टेबल पर रख, खुद टी वी ऑन कर आराम-कुर्सी पर पसर गए।  रिटायरमेंट के बाद यही उनकी दिनचर्या थी।  
सुबह के सात बज चुके थे, और वह चाय की चुस्कीयों  के साथ सुबह की खबरों का आनंद लेना चाह रहे थे।  टी वी खोलते ही देखा कि पिछले कई दिनों की तरह हर चैनल पर पेपर लीक की खबरें ही चल रही थी। सब अपने-अपने तरीके से दिखा रहे थे कि कैसे, कहाँ और कितने में पेपर बिके, कैसे इधर-उधर से एक किराए के कमरे में जरूरी समान जुटाया गया, कैसे प्रश्न-उत्तर रटवाये गए, और कैसे देश में प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए सरोगेट कैंडीडेट्स बिठाये जाते रहे हैं, और परीक्षा पास करवाने के लिए क्या-क्या दूसरे हथकंडे अपनाए जाते हैं।  
पत्नी, रोज की तरह अभी सोई पड़ी थी।  चंद्रकांत को पत्नी के चेहरे पर किसी पेपर लीक से डाक्टरी डिग्री पा लेने वाले की उपलब्धि जैसी आभा बिखरी दिखाई दे रही थी जिसके चलते कोई भी समझदार मरीज उससे अपना इलाज करवाने से अमूमन कतराता है।  इसी के चलते, चाय खत्म कर उन्हें नाश्ते की फिक्र हो आयी।  अंडा फेंटते-फेंटते उनके दिमाग में वो सारी घटनाएँ ताजा होने लगी जिस पेपर लीक के वह खुद शिकार हुए थे।   
पचास साल पहले जब उनका रिश्ता बिचौलिये  की मार्फत अंजना के घर पहुंचा था तो दूसरी तरफ पेपर लीक की जालसाज़ी के तैयारी पहले से ही शुरू हो चुकी थी।  सरोगेट कैंडीडेचर से परीक्षा का प्रथम चरण यूं सम्पन्न हुआ जब बिचौलिये के सहयोग से अंजना के साथ उसके पड़ोस की सुंदर लड़की को उसके साथ मंदिर में चन्द्रकान्त के घरवालों को दूर से दिखाया गया और बातचीत से यह भ्रम बनाया कि देखिये लड़की देखने में खूबसूरत है।  जब चन्द्रकान्त सपरिवार लड़की देखने पहुंचे तो अच्छी कमीशन वसूल किए बिचौलिये ने लड़की  के परिवार को सारा पेपर पहले से ही लीक कर दिया था कि उनके परिवार की क्या-क्या अपेक्षाएँ हैं और वे लड़की में कौन से गुण तलाश रहे हैं।  चंद्रकांत पढ़ने-लिखने वाले व्यक्ति रहे हैं और उनका परिवार पढ़ी-लिखी लड़की चाह रहा था।  उनकी माँ की सेहत ठीक नहीं रहती थी सो परिवार चाहता था कि लड़की आकर घर संभाल ले।  बिचौलिये ने उनके घर के रहन-सहन को खूब जांचा-परखा और जो भी देखा-सुना उसे अपने तरीके से लड़की वालों को जा सुनाया।  और फिर षड़यंत्र रचा गया।  अगले दिन लड़के वालों के देखने आने का समय नियत हुआ। दिन भर अड़ोस-पड़ोस से फ़र्नीचर और सजावट का सामान जुटाया गया; रात भर माँ और भाभी ने मिल कर लड़की को संभावी प्रश्न और उत्तर रटवाये, क्या पहनना है कैसे पड़ोस से मांगे गए टी-सेट में चाय परोसनी है, सब सिखाया गया।  
अगले दिन की आवभगत के प्रिलिमिनरी एग्जाम में किराए के घर को अपना बताया गया, कालेज में पहले साल बुरी तरह फ़ेल हुई लड़की को ग्रेजुएट बताया गया, और संतु हलवाई के यहाँ से मँगवाए समोसा, रसमलाई और बर्फी को लड़की की पाक-कला का कौशल दिखा परोसा गया।  तारीफ़ों के अगले राउंड में मेज पर बिछे कढ़ाई वाले मेजपोश और दीवान की चादर को लड़की की सिलाई-कढ़ाई का नमूना बताया गया।  माँ द्वारा अंदर बनाई चाय को जब लड़की ने ट्रे में टिकोज़ी से ढकी केतली लेकर घबराते-घबराते एंट्री ली तो वो पड़ोस वाली लड़की उसके साथ ही थी।  उसके हाथ में भी ट्रे थी जिस पर खाने का समान सजा था।  ऐसे में चन्द्रकान्त के घरवालों को उसी सुंदर लड़की में अपनी बहू दिखी।  
पोल तब भी न खुली जब चन्द्रकान्त की माँ अपना प्यार जताने उस सहेली लड़की के पास जा बैठी और उसकी बलाएँ लेने लगी।  यूं रिश्ता हो गया और जब शादी से पहले रस्मों का दौर शुरू हुआ तो सच्चाई जान, जात-बिरादरी में थू-थू के डर से समझौता करना ही पड़ा। 
नाश्ता बनाते चन्द्रकान्त ख्यालों की दुनिया से वापिस लौटे जब टोस्टर में जलती ब्रेड के धुएँ और बू ने उनके नथुनों पे लगातार दस्तक देनी शुरू कर दी।  वह घबरा गए कि इस बू से कहीं उनकी पचास साल-पुराने पेपर लीक-कांड की प्रॉडक्ट पत्नी नींद से जाग उन्हें निकम्मा होने के प्रमाणपत्र से नवाजने न आ पहुंचे।  
बिमल सहगल
नई दिल्ली
9953263722
[email protected]


बिमल सहगल
बिमल सहगल
नवंबर 1954 में दिल्ली में जन्मे बिमल सहगल, आई एफ एस (सेवानिवृत्त) ने दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। अंग्रेजी साहित्य में ऑनर्स के साथ स्नातक होने के बाद, वह विदेश मंत्रालय में मुख्यालय और विदेशों में स्तिथ विभिन्न भारतीय राजदूतवासों में एक राजनयिक के रूप में सेवा करने के लिए शामिल हो गए। ओमान में भारत के उप राजदूत के रूप में सेवानिवृत्त होने के बाद, उन्होंने जुलाई, 2021 तक विदेश मंत्रालय को परामर्श सेवाएं प्रदान करना जारी रखा। कॉलेज के दिनों से ही लेखन के प्रति रुझान होने से, उन्होंने 1973-74 में छात्र संवाददाता के रूप में दिल्ली प्रेस ग्रुप ऑफ पब्लिकेशन्स में शामिल होकर ‘मुक्ता’ नामक पत्रिका में 'विश्वविद्यालयों के प्रांगण से' कॉलम के लिए रिपोर्टिंग की। अखबारों और पत्रिकाओं के साथ लगभग 50 वर्षों के जुड़ाव के साथ, उन्होंने भारत और विदेशों में प्रमुख प्रकाशन गृहों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और भारत व विदेशों में उनकी सैकड़ों रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। अंत में, 2014-17 के दौरान ओमान ऑब्जर्वर अखबार के लिए एक साप्ताहिक कॉलम लिखा। संपर्क - [email protected]
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