Tuesday, September 17, 2024
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सतीश सिंह का व्यंग्य – तोंद की महिमा

हिंदू शास्त्रों में समय को 4 युगों यथा, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग में बांटा गया है। विद्वानों के अनुसार अभी कलियुग चल रहा है, लेकिन मौजूदा समय को ‘तोंदुल-युग’ कहना ज़्यादा प्रासंगिक होगा। हालांकि, इन्हें किसी कालखंड में नहीं बांधा जा सकता है, क्योंकि तोंदुलों का अस्तित्व अनादिकाल से बना हुआ है। इस मामले में ये काॅकरोचों को भी पीछे छोड़ चुके हैं। आज ये बहुसंख्यक हैं और देश को चलाने में इनकी अहम भूमिका है। इतना ही नहीं ऊर्जावान और क्षमतावान होने की वज़ह से दुनिया भर में इनकी तूती बोल रही है। 
तोंद की महिमा हर युग में बनी रही है और तोंदुलों को ईसा पूर्व से मान-सम्मान मिलता रहा है। उस ज़माने में गणमान्य व्यक्ति यानी नगर सेठ, पुरोहित, राज पुरोहित आदि तोंदुल ही हुआ करते थे, लेकिन वे अर्थव्यवस्था और धर्म के आधार थे। इनके सहयोग के बिना राजा कुछ भी नहीं कर सकता था। वे इतने ताकतवर होते थे कि, कभी भी राजा का तख़्ता पलट सकते थे। आज भी तोंदुल आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक दिशा-निर्देशों व नियम-कायदों को तय करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।  
तोंदुल की श्रेष्ठता से जलने-भुनने वाले इनकी महिमामंडन करने से बचते रहे हैं, पर आज ज़रूरत इस बात की है कि तोंदुलों के एहसान को माना जाये, उनकी अहमियत को समझा जाये, बे-वज़ह उनकी लालत-मलामात नहीं की जाये, हमेशा श्रद्धा भाव से उनका इस्तक़बाल किया जाये आदि। 
दुनिया में तोंदुलों के महत्व को या उनकी महिमा को सिर्फ़ इथोपिया जैसा देश ही समझ सका है, जहां निवास करने वाले ‘बोदी जनजाति’ में जिस पुरुष की तोंद सबसे ज्यादा बढ़ी हुई होती है, उसे सबसे सुंदर या हैंडसम माना जाता है। वहाँ, सभी पुरुष हमेशा तोंद बढ़ाने की जुगत में रहते हैं। बड़े-बढ़े तोंद पर लड़कियां मरती हैं, जान छिड़कती हैं। मोटे पुरुषों के लिए सौंदर्य प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है और सबसे मोटे पुरुष को विजेता घोषित करके उनका मान-सम्मान किया जाता है साथ ही साथ उन्हें पुरस्कार के रूप में एक मोटी राशि दी जाती है। 
वर्तमान में तस्वीर थोड़ी बदल गई है। राजा अर्थात नेता यानी सांसद, विधायक, मंत्री आदि तोंदुल बन गए हैं। देश यही चला रहे हैं। नेता को मामले से अलग कर दें तो भी रोज़गार सृजन का कार्यभार तोंदुलों ने अपने कंधों पर ले रखा है। 
डॉक्टर और दवाखाना वाले तो पूरी तरह से तोंदुलों के रहमों-करम पर जिंदा हैं। मिठाई, पिज्जा-बर्गर, गोलगप्पे व समोसा-चाट, जलेबी, पूरी-कचौड़ी व घूघनी, बकरा-मुर्गा, मोमो-चाउमीन आदि बेचने वालों की दुकान भी तोंदुल ही चला रहे हैं। कपड़े बेचने वाले, दर्जी आदि के मुनाफे को बढ़ाने में भी इस प्रजाति की अहम भूमिका है।   
वीएलसीसी, जिम चलाने वाले, स्लिमिंग मशीन का कारोबार करने वाले कारोबारी तोंदुलों की वजह से ही चांदी काट रहे हैं। करोड़ों-अरबों रुपये के वारे-न्यारे कर रहे हैं ये लोग। सिर्फ़ 1-2 किलोग्राम वजन कम करने के लिए तोंदुल, डाक्टरों और कारोबारियों की मोटी रकम से जेब गरम कर रहे हैं।    
बड़ी संख्या में महिलाएं तोंदुल पति की वजह से ही आज चैन की नींद सो पा रही हैं। पति की जासूसी करवाने का भी टेंशन उन्हें नहीं रहता है। पति की सेक्रेटरी सुंदर कन्या के रहने पर उन्हें डर नहीं लगता है। कभी बुरे सपने नहीं आते हैं। तोंदुल पति इधर-उधर  मुँह नहीं मारेगा और चर्बीदार और गुबारे जैसे फूले पेट वाले पति को, कोई भी कन्या घास नहीं डालेगी, का भरोसा पत्नी के मन में सर्वदा बना रहता है। हाँ, एकाध प्रतिशत कोई चंट या मक्कार लड़की पैसों के चक्कर में तोंदुल पति पर डोरे डालने की कोशिश करती भी है तो आसानी से पत्नी बेलन से या गालियों के बौछार से उसकी छीछालेदर कर सकती है।  
इश्क के चक्कर से बचे रहना, लड़की के चक्कर में पत्नी से लड़ाई नहीं होना, काम पर फ़ोकस बना रहना, हमेशा मनपसंद भोजन करना, कसरत करने या मॉर्निंग वॉक करने में समय बर्बाद नहीं करना, फ़िज़िकल खेल-कूद में व्यर्थ के पैसे खर्च करने से बचा रहना, हमेशा खुश रहना  आदि तोंदिल होने के ही तो फ़ायदे हैं। 
देखा जाये तो आज दुनिया तोंदुलों के रहमों-करम से ही चल रही है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के संदर्भ में देखेंगे तो इनका भारतीय अर्थव्यवस्था में कम से कम 25-30 प्रतिशत का योगदान जरूर होगा। अस्तु, अब वक्त आ गया है कि हम इन्हें हिक़ारत की नज़रों से देखना बंद करें और तोंदुल महाराज का सोते-जागते अविरल-अविराम जयकारा लगाएँ। 
सचमुच! तोंद की महिमा अपरंपार है।  

सतीश कुमार सिंह
मोबाइल-8294586892
सहायक महाप्रबंधक (ज्ञानार्जन एवं विकास)
भारतीय स्टेट बैंक
अहमदाबाद,
पिन कोड-380001
गुजरात
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