Sunday, September 8, 2024
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जिज्ञासा सिंह की तीन लघुकथाएँ

1 – जीवन दर्शन
बैसाख की फ़सल घर में सुरक्षित रखने के बाद दूजी मुखिया फिर अपने गाँव के मजदूरों को लेकर कमाई करने शहर पहुँचे और बिल्डिंग के प्रांगण में डेरा डाल दिया, दिन भर मज़दूरी और शाम को अपना-अपना चूल्हा, अपना-अपना ख़ाना। दूजी मुखिया ख़ाना नहीं बनाते उन्हें सारे मज़दूर अपने में से कुछ न कुछ देते हैं और उनका भोजन हो जाता है,  २५ से ३० मज़दूरों को साथ लिए दूजी, वर्षों से अनवरत ऐसे ही अपने समाज के जीवन-यापन में लगे हुए हैं।
झुग्गियों में धुआँ उठना बंद हो गया सब अपनी थाली सजा, गोलचक्कर बना के भोजन करने बैठ गए,  कोई दूजी को निठल्ला कह चटनी दे रहा कोई मँगता कहकर तरकारी दे रहा, कई तो कामचोर की संज्ञा देकर दूजी की थाली सतरंगी कर रहे। मैं प्रोजेक्ट का इंजीनियर ये दृश्य देख हैरान होकर एक दिन दूजी से पूँछ बैठा कि,
 “ये कल-कल के लड़के एक रोटी  के लिए तुम्हारी ठिठोली करते हैं, तुम्हें बुरा नहीं लगता।”
दूजी हँसते हुए बोले, “अरे साहब! ई ठल्ला हैं ठल्ला।” मैं उस अनपढ़ इंसान के बिज़नेस मैनेजमेंट पे हैरान था।
2 – सहयोग
“क्यों भाई क्या कारण है? कि हम सब एक हॉस्टल के होते हुए भी कभी एक दूसरे के काम नहीं आते हैं, रोज़ न सही! सुख-दुख का ही संबंध बना रहे आपस में, तो ये अहसास तो होगा कि पुराने मित्रों में कोई अपना तो है!”
“हाँ-हाँ! बिलकुल ऐसा होना चाहिए।”
सारे मित्र राज़ी थे और तुरत-फ़ुरत एक ह्वाट्सऐप ग्रुप बन गया।
मित्र की अचानक मृत्यु पर इकट्ठा हुए पुराने हॉस्टल वासियों के सम्मुख मृतक के घनिष्ठ मित्र ने ये विमर्श रखा कि “मृतक की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, क्यों न हम सभी लोग कुछ पैसे इकट्ठा करके उनकी पत्नी को मदद स्वरूप दे दें।”
अचानक से सारे मित्र पुष्पांजलि की पंक्ति में खड़े हो गए, पुष्प अर्पित करने के उपरांत पंक्ति का आगे का रास्ता बाहर सड़क की ओर खुला हुआ था।
3 – लेने के देने
चंदा माँगने वाले १०००० से नीचे नहीं आ रहे थे और मैं २१०० से ऊपर नहीं बढ़ रहा था, दूसरे दिन आने को कहके पूजा कमेटी चली गई। मैंने नौकर को हिदायत दी कि चंदा वाले आएँ तो कहना कि घर में कोई नहीं है, मैं नज़र बचाकर पीछे के रास्ते से निकल जाऊँगा।
छुपकर भागते हुए नाले में गिरने  से, टूटे पैर के इलाज में १२००० लगाने के बाद सेठ जी मित्र को अपना हाल बता रहे थे, पूजा कमेटी का सदस्य मैं, ये सुनकर खुश होऊँ या दुखी। समझ ही नहीं पाया।
जिज्ञासा सिंह
संपर्क – [email protected]
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