Sunday, September 8, 2024
होमलघुकथाडॉ बबीता काजल की लघुकथा - केनूला

डॉ बबीता काजल की लघुकथा – केनूला

जब  एम ए करके अपनी बीएड की डिग्री पूरी की थी,तो उसे लगा था जीवन में दिन बदलने वाले हैं।  पहले पी टी ई टी, टी ई टी,रीट परीक्षा एक के बाद एक देता गया। लेकिन रिजल्ट वही,हर बार ऐसा लगता उम्मीद किनारे पर आकर दम तोड़ रही है। कभी तीन कभी पांच नंबर से सरकारी नौकरी की ट्रॉफी मिलते मिलते रह जाती। धीरे-धीरे घर का ग्राफ नीचे आने लगा,पहले बड़ी बहन की शादी और फिर पिता की मौत ने घर में आर्थिक संकट को और गहरा कर दिया है, लेकिन ईश्वर इतने पर भी राजी नहीं था। उसे अभी कई बड़ी परीक्षाएं लेनी बाकी थी। धीरे धीरे उसकी खुद की तबियत बिगड़ने लगी।
खाँसता तो  खाँसता  चला जाता, जैसे फेफड़े बाहर आ जाएंगे। अचानक बलगम की गांठ सी बाहर आती और नाक से खून बहने लगता। एलर्जी, जुकाम, बुखार समझकर जिसे नजरंदाज कर रहा था वह दानव निकला,कैंसर निकला। बिमारी ने भी उसको चुना, और बीमारी भी बीमारी नहीं दैत्य जिसने अपने पंजे में लें कर उसे निचोड़ना शुरू कर दिया। भोजन नली में धीरे धीरे कुछ अटकने लगा। जांच करवाई तो गले का कैंसर जो पेट तक अतिक्रमण कर चुका था
पिछले दो वर्ष इस बिमारी से लड़ते लड़ते बीते। घर का जेवर, जमीन, जायदाद सब बिक गई। बूढ़ी माँ की नजरें बुझते दिए की आस सी उसकी तरफ देखती और छोटी बहन की बढ़ती उम्र थी कि छिपाए नहीं छिपती। बस वो लड़ रहा था बिमारी से और हालात से। ऐसे में फिर से रीट की परीक्षा का फार्म भी उसने थैरेपी लेने के बाद उठकर भरा था उसे याद है। डेट आगे खिसकते खिसकते परीक्षा भी कुदरती उसी दिन आई कि हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में हड्डियों का ढांचा बचे शरीर का रोमरोम कांप रहा था. पांचवीं थेरेपी जिस दिन हुई उसके अगले ही दिन पेपर था.उल्टियां करते करते भी चकराते सर के साथ भी वो रात भर किताबों के पन्ने टटोलता रहा. उसे भी पता था यह उसके लिए अंतिम अवसर है घरवालों को ग्लूकोज देने का
कैनुला लगाकर और पेट की दांयी तरफ बड़े से ढके कट के साथ जैसे तैसे पेपर देने गया। प्रवेश द्वार पर लम्बी लाइन थी चेकिंग हो रही थी, उसकी हालत बिगड रही थी, चेक करने वाले कॉन्स्टेबल ने जैसे ही उसकी बाजू को चैक किया. उसके हाथ का पूरा दबाव केनूला लगी नस पर पड़ा, उसके मुख से चीख निकल गई।
स्वेटर हटाते ही नजर केनूला पर पड़ी। परीक्षा केंद्र के लोग भी अचंभित थे, कि केनूला के साथ परीक्षा ?? किसी को क्या बताये खुद की मजबूरी ? लोगों ने केनूला ही देखा, कटा हुआ पेट का हिस्सा तो  ढका ही रहा।सीढ़ियां चढ़ कर हाँफता हुआ जैसे तैसे अपनी सीट पर पहुंचा । पेपर देखकर मन में उम्मीद जगी कि इस बार नैया पार लग जाएगी। लेकिन ये क्या? अभी पहला गोला भी काला नहीं कर पाया था कि कमरे में दनदनाते हुए दो लोग घुसे और जबरन पेपर सहित ओ एम आर शीट वापस इकट्ठी करने लगे। पूरे कॉरिडोर में हलचल बढ़ गई थी। क्या हुआ ?, क्या हुआ?, सब पूछ रहे थे। जबरन चेहरे को कठोर बना कर कमरे में घूम रहे एक महोदय से जवाब मिला “पेपर लीक हो गया।”
डॉ बबीता काजल
श्रीगंगानगर
राजस्थान
भारत 
RELATED ARTICLES

1 टिप्पणी

  1. बहुत ही मार्मिक!
    जिंदगी कैसे-कैसे इम्तिहान लेती है!
    मजबूरी जो ना करवाले वही थोड़ा है!
    नियति की मार बड़ी बेरहम होती है!
    ऐसी रचनाओं को अच्छी रचना कहते समय हम सोचते हैं बबीता जी! क्या कहें!

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest