शबनम सड़क पर बैठकर जोर-जोर से चिल्ला रही थी।
“मर गई…मर गई…कोई बचा लो।”
आसपास लोग इकट्ठा हो गए।
“आखिर हुआ क्या है? कुछ बताओगी?”
“चुप हो जाओ। लो पानी पी लो।”
“संभालो अपने आप को क्या हुआ? बताओगी नहीं तो कैसे पता चलेगा रो क्यों रही हो?”
“नहीं मुझे नहीं चाहिए पानी…”
मुजफ्फर बोला: किसी ने कुछ कहा?
“नहीं।”
“कुछ चाहिए?”
“नहीं?”
“अल्लाह के लिए मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो, आप जाओ यहां से।”
सलीम ने भीड़ में से पूछा – “आखिर बताओगी नहीं तो कैसे पता चलेगा।”
“आप मेरा दुख नहीं समझ पाओगे इसलिए मेहरबानी करके आप यहां से चले जाओ। मुझे किसी की हमदर्दी की जरूरत नहीं। मुझे तो सिर्फ इंजेक्शन चाहिए। अल्लाह की खातिर मुझ पर रहम करो। मेरी दवाई वह लड़का लेने गया है। अभी तक आया नहीं। मेरे शरीर से जान निकल रही है।”
“कौन लड़का? कौन सी दवाई?”
“वह इंजेक्शन जो मैं करती हूं। अगर नहीं किया तो मैं मर जाऊंगी।” शबनम सड़क पर एड़ियां घसीट रही थी।
उसकी हालत देख कर कलेजा मुंह को आ रहा था।
“मुझे बचा लो, मैं मरना नहीं चाहती, मुझे इंजेक्शन लगा कर दो जल्दी।”
“हाय तौबा कैसी बेशर्म लड़की है, यह इसको तो शर्म भी नहीं सरेआम बोल रही है।”
“शायद इसको नशे का इंजेक्शन करना है? इसीलिए तड़प रही है!”
“कोई इसके घर वालों को बुलाओ।”
हमें क्या पता यह कहां रहती है और कहां से आई है? हमें तो लगा था कि दुखियारी है। किसी ने बहुत अधिक पीड़ा दी है इसलिए दुखी है और तड़प रही है।”
मारो गोली इसको नशेड़ी कहीं की। इसी तरह हमारी युवा पीढ़ी खत्म हो जाएगी। आखिर क्या हो गया हमारी इस युवा पीढ़ी को?
बहुत सुंदर mam,
सामाजिक बुराई पर प्रहार करती हुई, एक प्रेरक कथा
जी बहुत बहुत आभार
बहुत सार्थक कहानी
बहुत बहुत धन्यवाद
Extremely marvelous
Thxs
मुक्ति शर्मा की लघु कथा तलब हमारे आज के जनजीवन का कड़वा सत्य है। पंजाब के बाद अब जम्मू कश्मीर भी नशे के जाल में फंस चुका है। बधाई।
बहुत बहुत आभार राजेश जी
मुक्ति जी! आपकी लघु कथा ‘तलब’ पढ़ी। सच पूछा जाए तो यह सबसे अधिक दर्दनाक और सुधार के क्षेत्र में सबसे अधिक विचारणीय विषय है। हमारे देश का युवा वर्ग कुछ लोगों के नाजायज तरीके से धन कमाने की लिप्सा के वशीभूत सिर्फ निजी स्वार्थ की अपेक्षा की भेंट चढ़ रहा है। सच में बहुत अधिक दुख होता है। आज के संपादकीय का मुख्य विषय इस चिंता के साथ भी जुड़ा है। इस तरह के कुछ कारक इस विषय से भी जुड़े हैं।। बड़ी-बड़ी अपेक्षाएँ और ऊपर से बेरोजगारी शायद इसका मुख्य कारण हो। एक जरूरी विषय की और ध्यान दिलाने वाली महत्वपूर्ण लघुकथा है आपकी।
बहुत-बहुत बधाइयां आपको इस बेहतरीन लघु कथा के लिये।
इस दिशा में सरकार को कोई न कोई ठोस कदम उठाने की सबसे ज्यादा जरूरत है।
बहुत बहुत आभार,आप ने विस्तार पूर्वक टिप्पणी की,
सम्पादक जी का आभार जिन्होंने कहानी को छापा।
यह विषय बहुत ही चिंता जनक है अब तो मुझे लगता है कश्मीर भी उड़ता कश्मीर बन गया है।
धन्यवाद= निलिमा जी
तलब एक नशे पर फोकस करती सारगर्भित कहानी।युवा पीढ़ी के वर्ग विशेष का हाल बेहद संवेदनशीलता से बयां करती है।
हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई हो।
बहुत बहुत आभार, शर्मा जी, हालात बहुत खराब हो रहे हैं, युवा पीढ़ी में नशे की लत बहुत बढ़ रही है।
आंखों देखा हाल है।
कश्मीर में
आजकल का कड़वा सच, कहीं भी देखने को मिल जाएगा।
Jee thxs
गुमराह युवावर्ग नशे की भेंट चढ़ रहा है। रोजगार इसका एक हल हो सकता है जिसपर सरकारों को काम करना चाहिए। नशे के प्रसार को बंद करने के लिए कारगर करदम उठाने चाहिए। सरकारें इसमें फेल हो रही हैं। इसका एक अन्य पक्ष भी है जो अधिकांशत: अनदेखा रह जाता है। पारिवारिक सदस्यों में भावनात्मक दूरियाँ भी इस तरह की दलदल का मार्ग दिखाती हैं।
बेरोजगारी टेंपरेरी स्थिति है। भावनात्मक संबल होना आवश्यक है। ज़रूरी विषय पर लिखी गई लघुकथा के लिए डॉ मुक्ति शर्मा जी को बधाई।
बहुत बहुत आभार, वन्दना जी,आप जैसे बड़े लेखकों की टिप्पणी प्रेरणा स्रोत होती है।
अभिनंदन
“तलब”कहानी में प्रसिद्ध कहानी कार डा० मुक्ति शर्मा ने पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति से गढ़ी मढ़ी नयी युवा पीढ़ी के युवक/ युवतियों की नशाखोरी में अनियंत्रित मनोवृत्ति पर लेखनी चलाई है और नशा उन्मूलन के प्रति चिंता भी व्यक्त की है। कहानी की मुख्य पात्रा नशाखोरी में इतनी अभ्यस्त हो चुकी है कि नशा में जीना मरना ही उसे भा रहा है उस विकल परिस्थिति में अपने स्वजन परिजनों को परित्याग करने में नहीं हिचक रही है। क्योंकि उसे नशे की तलब/ होड़़क उसके सिर पर सवार है। और वह अधोगति की ओर भी जाने के लिए तैयार है। शुभचिंतकों व राहगीरों के प्रश्न निरुतरित हो जाने पर सब उसे उसकी दशा पर छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं। और वह तड़प रही है। कहानी का अंत अंतहीन है।
कहानी कार की लेखनी नशा उन्मूलन की दिशा और दशा को लेकर और समाज की इस विकृति को देखकर ठिठक जाती है। क्योंकि इस दिशा में कोई सटीक कठोर कदम उठाने मे सरकार व /सामाजिक संस्थाएं निष्योज्य है। और युवा पीढ़ी की दिग्भ्रमित चाल ढाल सिर पर सवार है। कौन किसको बचाए, यह समस्या है। इति।
डा०मुक्ति शर्मा को बहुत बहुत साधुवाद। समाज के इस ज्वलंत निरुतरित प्रश्न उकेरने के लिए आभार। शत शत नमन। प्रयास प्रशंसनीय है। इति।
राधेश्याम “राधे “, लखनऊ।
अब एक सुझाव व शिकायत:-
प्रस्तुत कहानी के सभी पात्र मुस्लिम समाज से जुड़े हैं। जो आज के परिवेश में हिंदू विरोधी और हिन्दू समाज के लिए घातक / जिहादी है। ये समाज हिंदूओं को मिटाना और धूरधसित करने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। ऐसे कहानी/ कथाकार को अपनी अगली कहानी में पात्रों के नाम हिंदू समाज से जुड़े होने चाहिए। कथानक कोई भी हो। यद्यपि कहानी कार जीवन इन मुस्लिम समाज/ व जिहादियों के बीच गुजरा है। इसलिए उनको नाम चयन करने में विवशता हो सकती है। लेकिन हिंदी शब्द कोश में असंख्य नाम उनकी अगली कहानी में शोभा बढ़ा सकते हैं। कृपया इस सुझाव शिकायत पर विचार करें और जो उचित लगे वो करें। विनीत –
राधेश्याम “राधे”
वरिष्ठ साहित्यकार कवि लेखक स्वतंत्र पत्रकार,समीक्षक। लखनऊ
९.१०.२०२४.