Sunday, September 8, 2024
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डॉ जया आनंद की कहानी – बोंजोर

” बोंजोर “
“अहा! क्या कहा आपने?…मेरा मतलब वाॅट डिड यू से?…अमृता ने हाथ से इशारा भी किया अपनी बात समझाने के लिए 
” बोंजोर…बोंजोर …लाइक हेलो ” होटल में काम करने वाली मेड ने उसे समझाया 
” ओ बोंजोर… तो नमस्ते! . ” अमृता ने मुस्कुराते हुए हाथ जोड़ दिए। 
नया देश, नई भाषा,सबकुछ नया अपने भारत से नितांत अलग ।कहने को सारी दुनियां एक हो गई है लेकिन जब दूसरे देश पहुँचो तो महसूस होता है कि हर देश, हर जगह की अपनी एक अलग दुनियां समाई है,उसकी अलग खुश्बू है। अमृता उसी खुशबू में डूबती उतरा रही थी। 
उसने होटल के कमरे की खिड़की खोली, बाहर झाँक कर देखा ‘ कहीं एफिल टाॅवर दिख जाए.. पर नहीं दिखा ‘ ,अब फ्रांस की राजधानी ‘पेरिस ‘ पहुँच गए हैं तो एफिल टाॅवर दिखेगा ही’ यही सोचकर अमृता ने मन को समझा लिया। 
” अमृता! तैयार हो जाओ, बस ब्रेकफास्ट कर के आज हम घूमने निकलेंगे ” हर्षित ने आवाज लगाई ।
हर्षित अमृता के बेटर हाफ यानी उसके पति,फ्रांस आए थे एक ट्रेनिंग प्रोग्राम में साथ अमृता भी होली।  अमृता ने फ्रांस के कला, साहित्य प्रेम के विषय में बहुत सुन रखा था। ज्यापाल सार्त्र,  सिमोन द बुआ, मोनालिसा की पेंटिंग….बड़ा आकर्षण था इन नामों में।अब उन्हीं की धरती पर कदम रखना उसके  लिए सुखद अनुभूति थी ।
      अमृता हर्षित की आवाज सुन फटाफट तैयार होने लगी । उसने लाल रंग की मिडी पहनी, खुद को शीशे में निहारा… ‘ अच्छी दिख रही हूं मैं ‘ अमृता खुद से ही बोली। यों भी जब कोई तारीफ न करे तो अपनी तारीफ खुद ही कर लेना चाहिए, ऊर्जा मिलती है, जीवन में उमंग आता है और ये सब जीने के लिए जरूरी है…हाँ घूमना भी उनमे से एक है।  यात्राओं से जिन्दगी हर पल नई लगती है ।
   ” आज कहाँ चल रहे हैं ?” 
 ” मोनमार्त्रे “
” …क्या..…मोहन..??”
” अरे अमृता! मोनमार्त्रे…गूगल पे डालो सब समझ आ जाएगा, फ्रांस का ये खूबसूरत सा गांव है, कलाकारों का चित्रकारों का गांव “
   अमृता को किसी गूगल  सर्च  ईंजन की जरूरत नहीं लगी क्योंकि अब उसके मन मस्तिष्क का आकाश कल्पना की दुनियां सजाने लगा था जिसके चित्र ‘मोनमार्त्रे  गांव’ से मेल खाते थे।
     पेरिस की मेट्रो  ट्रेन में सफर करते हुए अमृता हर्षित के साथ मोनमार्त्रे पहुँच गई। ‘ ओह ऐसा होता है फ्रांस का गांव, ये तो जैसे बार्बी डॉल की दुनियां जैसा है। हल्की सी ऊंचाई पर बसा था ये गांव…अमृता  को तो शहर सा ही मालूम दे रहा था। किनारे पंक्तिबद्ध लाल मेज़पोश से सजी टेबल कुर्सियाँ, ऊपर लाल शेड और उसके ऊपर ढेर सारे सजे हुए फूल, रेस्टोरेंट में काले सफेद ड्रेस और लाल एप्रन में सजे वहाँ के कर्मचारी…कई सारी पेटिंग की छोटी-छोटी दुकानें कुछ और आगे बढ़ने पर गिटार और सेक्सोफोन बजाते हुए कई कलाकार, कुछ किताबों की सुन्दर सी दुकाने …साहित्य, संगीत, कला की दुनियां एक साथ यहाँ दिख रही थी, फ्रांस के विषय मे जो सुना था उसे अमृता साक्षात अपने सामने घटता हुआ देख पा रही थी। कैमरे में सबकुछ कैद करते हुए कुछ और आगे बढ़ी ही थी कि कई चित्रकार पेंटिंग करते हुए नजर आए। उनमे से कुछ चित्रकारों ने अमृता को रोक कर उसकी पेंटिंग बनाने के  लिए टूटी फूटी अंग्रेजी में कहा पर हर्षित ने इशारों में उसे मना कर दिया। अमृता भी उन्हें मना करते हुए आगे बढ़ गई। वहाँ कुछ आगे  एक विशालकाय सुन्दर चर्च था और वहाँ से नीचे उतरती सीढियों की रेलिंग पर कई ताले लटके थे, वो शायद मन्नत के ताले प्रतीत हो रहे थे, जैसे अपने देश में मन्नत पूरी होने पर लोग धागा या घंटियां बांधते हैं।  वो जगह मोनमार्त्रे की सबसे ऊंची जगह थी, वहां से पूरा पेरिस दिखाई पड़ रहा था…’अहा!कितना सुन्दर, दृष्टि का विस्तार, मोहब्बत के शहर पेरिस को अपनी आँखों में समेट लेना ‘ चकित हो कर अमृता  उस दृश्य को देख रही थी कि एक चित्रकार आ कर अमृता का स्केच अपने कोरे कागज पर खीचने लगा। 
‘ …ब्यूटीफुल फेस …इमोशनल आइज ” ,वो चित्रकार बुदबुदाते हुए अमृता का स्केच बनाता जा रहा था। 
  न जाने क्यों अमृता उस चित्रकार को मना नहीं कर पाई ,वो वहीं भीड़ भरी सड़क पर खड़ी होकर अपना स्केच बनवाने लगी। वह चित्रकार बड़े ही गांभीर्य से मनोयोग पूर्वक अपना काम कर रहा था। सर पर कैप , गले में लाल रंग का स्कार्फ, स्लेटी रंग का ब्लेजर…बहुत जंच रहा था उस चित्रकार पर। लंबा कद, यूरोपियन संस्कृति की मिसाल प्रस्तुत करता हुआ व्यक्तित्व, कोई तो ऐसा आकर्षण कि उसे वो मना नहीं कर पाई, पीछे से हर्षित आगए,
” अमृता! आखिर तुम ने अपनी पेंटिंग बनवा ही ली ” 
” सर! दिस इज फ्रांस, एन्जॉय आर्ट, म्युजिक, लिटरेचर…” उस चित्रकार ने बड़ी बेफिक्री से स्केच बनाते हुए कहा 
   हर्षित भी आगे  कुछ बोल नहीं पाए ।
सूरज ढल रहा था और मोनमार्त्रे इलेक्ट्रिक लाइटों से जगमगाने लग गया था,  रेस्टोरेंट्स से बजती   फ्रेंच गानों की धुन हवा में घुल रही थी और वो चित्रकार अमृता का स्केच बनाने में मगन था। 
    पांच मिनट बाद स्केच पूरा हो  गया। उसने मुस्कुराते हुए अमृता को स्केच दिखाया। 
” ओह! कितना सुन्दर स्केच आपने बनाया…आई मीन वेरी ब्यूटीफुल, अमृता ने हाथों से इशारा करते हुए अपनी बात समझाने की कोशिश की ।
    ” अमृता! पूछो कितने का है ये स्केच और जल्दी करो यहां से अभी लास्ट मेट्रो  ट्रेन जाने वाली है ” हर्षित अपने मोबाइल पर मेट्रो ट्रेन का टाईम टेबल देखते हुए बोले
” हाँ…हाँ पूछती हूँ…हाऊ मच डज दिस स्केच काॅस्ट ? ” अमृता ने उस चित्रकार से पूछा 
” दिस इज प्राइसलेस ” बड़ी ही बेफिक्री से उस फ्रेंच चित्रकार ने कहा 
    
” प्लीज बताइए …टेल मी द प्राइस” अमृता ने फिर पूछा पर वो चित्रकार स्केच लेकर आगे बढ़ गया। 
अमृता उसके पीछे गई और कई बार पूछा तो उसने मुस्कुराते हुए कहा, ” ओके फाॅर यू…दिस इज ऑफ वन मिलियन”
‘ प्लीज…टेल मी द रियल  काॅस्ट ” अमृता की आवाज में आग्रह साफ झलक रहा था 
” ओके टेक दिस वन एज ए गिफ्ट ” 
 अमृता उसके उत्तरों से खीझ सी गई ,’सही क्यों नहीं बता रहा, कभी कहता है कि इसका कोई मूल्य हो नहीं सकता तो कभी वन मिलियन…और अब कह रहा है कि उपहार समझ के ले लो ‘… पर फिर संयत हो कर बोली।
” प्लीज बताइए न,टेल  मी द प्राइस “
” वो चित्रकार मुस्कुराया और फिर धीरे से कहा….ओके हम्म…फिफ्टी यूरो ,डन!”
” क्या….फिफ्टी यूरो …ये तो बहुत ज्यादा है, उसने मन ही मन फिफ्टी यूरो को भारतीय मुद्रा से गुणा-भाग कर डाला..ओह ये तो बहुत मंहगा पड़ेगा, चार हजार रुपये की पेंटिग…न..न मैं नहीं खरीद पाऊँगी ” अमृता ने फिर हिम्मत जुटाई और उस चित्रकार से कहा। 
” प्लीज गिव इट टू मी इन ट्वेंटी यूरो ” 
” साॅरी … सॉरी, कहते हुए वो चित्रकार अपनी धुन में आगे बढ़ गया।
    ” देर हो रही है चलो ” हर्षित की आवाज सुन अमृता भी मेट्रो स्टेशन की ओर चल पड़ी पर एक बार फिर उसके मन ने कहा कि वो स्केच अगर तीस यूरो में दे दे तो वो खरीद लेगी’
  अमृता फिर पीछे पलटी उनकी नजरे उस चित्रकार को ढूंढ रहीं थीं …वो दूर एक कुर्सी पर  आंखें  बंद कर बैठा था और कुछ गुनगुना रहा था। 
 अमृता धीरे से उसके पास गई और कहा 
” प्लीज… टेक थर्टी यूरो एंड..” 
” सॉरी! …आई कांट ” कहते हुए उसने फिर आंखें बंद कर ली और अपनी धुन में मग्न हो गया। 
अमृता कुछ उदासी के साथ मोनमार्त्रे की गलियों को अलविदा कहते हुए मेट्रो स्टेशन की ओर बढ़ गई । 
    मेट्रो ट्रेन चल पड़ी थी और अमृता के मन की गति ने भी करवट ली ‘ अरे ऐसे स्केच तो भारत में सौ-सौ रुपये में मिल जायेगे, बेवजह वो टेंशन ले रही है ‘ । उसने खुद को अब पूरी तरह समझा लिया था । पेरिस का ‘जावल’ स्टेशन आ गया था,वहीं उनका होटल था ‘होटल मरक्यूरे ‘ । पेरिस की चमचमाती सड़कों से गुजरते हुए अमृता उस चित्रकार की कला को भूलने लगी, चकाचौंध में सम्वेदना और सुकोमल भावनाएं धुंधली होती जाती है और   हमारी आत्मा भी बौनी होती प्रतीत होती है। 
       अगले दिन ‘एफिल टाॅवर ‘जाना था। फ्रांस मतलब ‘एफिल टाॅवर ‘बचपन से यही जाना था अमृता ने और आज उसे अपनी आंखों से देखने  वाली  थी। वहाँ की सिटी बस से अमृता और हर्षित ‘एफिल टाॅवर ‘पहुँच गए 
” उफ्फ… विश्वास नहीं हो रहा, अद्भुत ” अमृता आश्चर्य चकित थी। 
” चलो-चलो जल्दी करो अमृता और भी पॉइंट्स घूमने हैं ” 
 हर्षित के लिए घूमना भी एक काम है, घूमने के सुख को भीतर से अनुभव नहीं करते। अमृता   ने हर्षित की आवाज सुनकर मुँह बिचकाया। 
 ” देखो तो हर्षित कितना सुन्दर और कितना विशाल है ये ‘एफिल टाॅवर ‘ ,फ़िल्मों में या फोटो में इतना बड़ा तो नहीं दिखता था। “
 
” हाँ-हाँ ठीक है… ऊपर टॉप पर जाने के लिए टिकट ले लेता हूं, रात मे ऊपर जाएंगे तो तुम्हें अच्छा लगेगा “
अमृता हँस पड़ी…ये हर्षित भी, इसी बात पर मन मोह लेते हैं कि जो मुझे अच्छा लगे वो काम कर दो…
      ‘एफिल टाॅवर’  के परिसर से बाहर की ओर फुटपाथ पर कई चीजें बिक रही थीं जिसमें फ्रेंच कैप , छोटे-छोटे एफिल  टाॅवर की प्रतिकृति और कुछ आगे बढ़ने पर कई सारी पेंटिंग्स…,अमृता एक पल रुकी, मन फिर मोनमार्त्रे के उस चित्रकार की ओर चला गया, क्या ले लेना चाहिए था वो स्केच?’ …पर फिर पेरिस की रंगीन दुनियां में मन का ऊहापोह दब गया। 
   सिटी बस आ चुकी थी। उस ओपन बस पर बैठ कर अमृता हर्षित के साथ पेरिस के सफर पर निकल गई। नोट्रे डम डी पेरिस, आर्क डि ट्राम्फ, बेसिलिका ऑफ सेक्रेड हार्ट आदि जगहों पर घूमते हुए पेरिस के बाह्य सौंदर्य से परिचित हो रही थी।
 ” कितना सुन्दर है पेरिस, कहीं ऊँची-ऊँची इमारते नहीं, नो हाइ राइज बिल्डिंग्स…यूरोपियन स्थापत्य का अद्भुत नमूना ,है न हर्षित ! “
“इतनी गहराई से मैं नहीं घूमता…हाँ अच्छा लग रहा है मुझे सब ” 
     अमृता को हर्षित से ऐसे ही उत्तर की अपेक्षा थी , अलग-अलग  राहों के राही साथ रहते-रहते एक दूसरे को बहुत हद तक पहचानने लगते हैं और फिर ये साथ ही मन को भाने लगता है, यह सोचकर वो मुस्कुरा दी। 
      शाम हो चली थी और सिटी पेरिस के दोनों भाग ‘गेरो दि ईस्ट और गेरो दि नॉर्थ का चक्कर लगाते हुए ‘एफिल टाॅवर ‘पहुँच गई। पेरिस को दो भागों में विभाजित करती हुई ‘सीन नदी ‘ इस घुमंतू प्रक्रिया में कई बार दिखी। इस नदी की तरलता से पेरिस का सौंदर्य निखर कर आ रहा था,यों भी बहती नदी जीवन की निरन्तरता का आख्यान कहती है और उस जगह को भी जीवंतता प्रदान करती है। 
       सूर्य’ सीन नदी ‘में डुबकियाँ लेने लगा था कि तभी’ एफिल टाॅवर ‘टिमटिमाती लाइटों से जगमगा ने लग गया। ऐसा नजारा पूरे दिन भर में एक बार होता है। अब उस जगमगाते हुए गुस्ताव आइफिल द्वारा बनाए हुए 324 मीटर ऊंचे लोहे से बने दुनियां के सुप्रसिद्ध टाॅवर पर अमृता चढ़ने जा रही थी। हर्षित  ने हमेशा की तरह अपने काम में निपुणता दिखाते हुए गाइड, टिकट सबकी व्यवस्था पूरी मुस्तैदी से की थी। 
    एफिल टाॅवर पर लिफ्ट से अपने गाईड के साथ अमृता और हर्षित चढने लगे। दूसरे मंजिल पर लिफ्ट ने उन्हें छोड़ा। गाईड वहाँ पर साथ में आए दूसरे लोगों को भी एफिल टाॅवर के विषय में विस्तार से बताने लगी, वो फ्रेंच और अंग्रेजी दोनों ही अच्छा बोलती थी लेकिन फ्रेंच लोग फ्रेंच भाषा ही बोल रहे थे, अपनी भाषा अपनी संस्कृति पर गौरव करना कोई इनसे सीखे। वहाँ से नीचे जगमगाता हुआ पेरिस दिख रहा था और दिख रही थी अपने पूरे नूर के साथ ‘सीन नदी’ । अमृता को ‘एन इवनिंग इन पेरिस ‘ फिल्म याद आगई ‘ काश कि यहां जोर से गा सकती ,काश कि कोई गाना फ़िल्मों की तरह अपने आप बज उठता ‘ अमृता उस पल की रूमानियत में खोई सी थी। 
“चलो-चलो जल्दी ऊपर टॉप पर चलो, देख लिया न यहां से अब ” 
हर्षित की आवाज से अमृता ख्यालों की दुनियां से बाहर निकल आई और सीढियां चढ़ते हुए पहुँच गई एफिल टॉवर के टॉप पर, टॉप पारदर्शी शीशे वाली खिड़कियों से घिरा था, ऊँचाई बहुत अधिक होने के कारण वहाँ खुली सतह रखना सुरक्षित नहीं होता सम्भवतः इसलिए..।वहाँ विभिन्न देशों की ऊँची-ऊँची  ऐतिहासिक   प्राचीन-नवीन इमारतों की फोटो थीं और वहीं पर गुस्ताव आइफिल, उनकी बेटी और  वैज्ञानिक एडीसन के सजीव प्रतीत होते पुतले लगे थे, उसे देख अमृता के मन में एक बार फिर फ्रांस की कला के प्रति श्रद्धा भाव जागृत हो आया और फिर याद आ गया वो चित्रकार और उसका स्केच…उसे याद कर अमृता ने गहरी साँस खींची और फिर हर्षित के साथ लिफ्ट की ओर चल पड़ी। 
अब अमृता वापस जमीन पर थी, बहुत सारी फोटो ऊपर खिंचवा चुकी थी लेकिन एफिल टॉवर के नीचे विशाल परिसर के सौदर्य को भी कैद करना था इसलिए हर्षित के साथ उसने  वहां कई सेल्फी ली फिर एक फ्रेंच लड़की से उनकी और हर्षित की फोटो साथ खींचने के लिए कहा। उस लड़की ने बड़े ही अदब के साथ उन दोनों की फोटो ली फिर रुक कर फ्रेंच भाषा में और कुछ इशारे से पूछा “क्या फोटो ठीक आई है!”
अमृता ने भी मुस्कुराते हुए ठीक होने का इशारा किया, सचमुच वो फ्रेंच लोगों की सदाशयता से प्रभावित हो रही थी। …उस परिसर से बाहर निकलते ही उसकी नजर उस फुटपाथ पर गई जहाँ सुबह पेंटिग बिक रही थी और कुछ कलाकार स्केच बना रहे थे पर अब वहाँ कोई नहीं था ,अमृता ने भी अब उस मोनमार्त्रे के चित्रकार की स्मृति को अपने मन के कई परतों में दबाने की कोशिश की और ऐसा आभासित होने दिया कि अब उसके जीवाश्म भी शेष नहीं। 
          अगले दिन उन्हें पेरिस का सुप्रसिद्ध लोवर म्युजियम जाना था। सिटी बस से अमृता और हर्षित पेरिस के रंगीन नजारों को देखते हुए पहुँच गए प्रसिद्द ‘लोवर म्युजियम ‘।वहाँ उन्होंने पहले से ही गाइड बुक किया हुआ था। उसका इंतजार करते हुए अमृता म्युजियम के बाहर का नजारा देख रही थी, कुछ युवा बेहतरीन डांस कर रहे थे, कुछ लोग तरह- तरह के वाद्य यंत्र बजाते हुए पूरे माहौल को खुशनुमा बना रहे थे…’साहित्य, संगीत कला जिंदगी को कितना अर्थवान बनाते हैं, मन मे कितनी आर्द्रता भरते हैं ‘ ,यही सब सोच ही रही थी अमृता कि उनकी गाइड वहाँ पहुँच गई। उसने अपने समूह के लोगों को गले में लटकाने के लिए एक डिवाइस दी और इयर फोन दिए और स्वयं हाथ में बंद छाता ऊपर  किए  फ्रेंच और अंग्रेजी भाषा में गाईड करती हुई म्युजियम के अंदर ले जाने लगी।  अंदर अचंभित करने वाली मूर्ति कला   , नेपोलियन बोनापार्ट के शाही जीवन और युद्ध की अनेक विशाल पेंटिंग, वेनिस की मूर्ति, मिस्र की झांकी के विषय में वो गाईड विस्तार से बता रही थी, ” नाउ इट्स टाइम टू वाच मोनालिसा पेंटिग ” गाईड के कहते ही अमृता चहक उठी। 
” ओह कितना कुछ सुन रखा है इस पेंटिग के विषय में, मोनालिसा की मुस्कान तो जग प्रसिद्ध है “
   ” हाँ!मोनालिसा पेंटिग के विषय में तो मैंने भी सुना है ” हर्षित की भी आँखों में चमक थी जिसे अमृता ने महसूस कर लिया था। 
      एक बड़े से हाॅल में बहुत सारे लोगों की भीड़ में एक छोटी सी  मोनालिसा की पेंटिग लगी थी। लियो नार्दो द विंसी की यह मनभावन कृति अमृता के सामने थी। रंगों का समायोजन, उसकी आँखें जिसे जिस भी कोण से देखो तो मालूम देता है कि वो उन्हें ही देख रही हैं, उसकी मुस्कान जिसमें शालीनता, सौम्यता कूट-कूट कर समाई है, ऐसी कृति को देखने के लिए हजारों लोग आते हैं, उसे देखकर अमृता मग्न थी कि अचानक मन की परतो में दबा वो मोनमार्त्रे का चित्रकार उभर कर आ गया ‘ हम सोचते हैं कि हमने सबकुछ भूला दिया पर शायद भूलता तो कुछ भी नहीं, न अच्छा न बुरा ‘ ,अमृता कुछ उद्वेलित सी हो उठी थी।
×          ×         ×         ×
मैपेल के पत्तों से धरती बिछी हुई थी, ये पत्ते मानों मोहब्बत की दास्तान सुना रहे थे, मोहब्बतें जो अनकही रही, जिन्हें आँखों से देखा या सुना गया या जो मुक्कमल हुई उनकी खुशियों को बिखेरते  दिख रहे थे ये पत्ते और उन पत्तों और पेड़ों के बीच एकांत का सुख ले रही थी अमृता। ये जगह यानी फाॅनटेनब्लू पेरिस से एक घण्टे की दूरी पर  था। यहाँ के इनसिआड इंस्टीट्यूट में हर्षित की ट्रेनिंग शुरू हो गई थी। देश विदेश के लोग आए हुए थे।कुछ लोगों से अमृता की बात भी हुई ,अच्छा लगा अलग-अलग संस्कृति के लोगों से मिलना पर मन तो पूरी तरह किसी के साथ रमता नहीं, अगर अकेले ही सुख की अनुभूति हो रही हो तो वैसा ही सही। वहां स्वयं के साथ प्रकृति का आनंद अमृता ले रही थी । लाल, हरे, नीले, पीले, स्लेटी, गुलाबी रंगों से पटी प्रकृति उसे लुभा रही थी ‘ईश्वर की ये चित्रकारी कितनी सुन्दर है ,अमूल्य है …उस चित्रकार ने भी तो यही कहा था उस स्केच के लिए ‘ दिस इज प्राइसलेस ‘ …क्यों नहीं ले लिया उस दिन वो पेंटिंग, इतनी गणित क्यों लगा दी…इससे महँगी महँगी साड़ियां, ड्रेसेस वो खरीद लेती है लेकिन एक चित्रकार,एक कलाकार के कला की कोई इज्ज़त नहीं और उन दिनों जबकि उसने इसी साहित्य, संगीत, कला के लिए विज्ञान वर्ग छोड़ा था, कहाँ लगाई थी कोई गणित कि विज्ञान वर्ग में अधिक फायदा है या कला वर्ग में, प्रेम, सम्वेदना, उदात्त भाव इसे ही तो सहेजना था उसे फिर क्यों उस दिन पीछे हट गई…उसका मन ग्लानि से भरा जा रहा था। 
हर्षित की ट्रेनिंग चलती रही और अमृता उस एकांत में चिन्तन -मनन करती रही, लिखती रही पढ़ती रही। उसने संस्कृत श्लोक  में पढ़ा था  ‘ साहित्य संगीत  कला विहीन व्यक्ति  नर रूपी पशु के समान  होता है। फ्रांस भी साहित्य संगीत कला का पुजारी रहा है।वहाँ  के ‘फ़ॉन्टेनब्लू  पैलेस’ में भी अमृता ऐसा ही अनुभव कर रही थी। 
“देखो!हर्षित यहाँ शाम के समय अधिकांश लोग अपने बच्चों को घुमाने  लाते हैं और फिर म्यूजिक में एक साथ डांस करते हैं, गाते बजाते हैं, अपने देश जैसा यहाँ प्रतीत होता है और जो भी यहाँ दिखता है वो हाथ हिला कर कहता है ‘ बोंजोर ‘ “
   हर्षित ने मुस्कुरा कर हामी भर दी। …और अमृता फ्रांस की गलियों, चौबारों को, वहाँ के लोगों को सूक्ष्मता से जानने और समझने की कोशिश में खुशियां समेटती रही। 
ट्रेनिंग खत्म हो चुकी थी ,उनकी फ्लाइट वापस पेरिस से ही थी। अमृता,हर्षित के साथ टैक्सी में बैठ कर एयरपोर्ट की ओर चल पड़ी, बहुत कुछ समेट कर जा रही थी वो यहाँ से, उसने कुछ -कुछ छोटी-छोटी चीजें सबके लिए ली थीं, फ्रेंच कैप, चॉकलेट, छोटे-छोटे एफिल टॉवर, बहुत सारे पत्ते…,और बहुत कुछ मन की पोटली में समेट लिया था। निहारते हुए जा रही थी फ्रांस को उसकी राजधानी पेरिस को, आँखे भी तो इसलिए दी ईश्वर ने कि इनमें भी बसा लिया जाए उसे जो हमे स्नेह से भरता रहा हो, जिसे देखकर जीने की इच्छा प्रबल हुई हो। उनकी आँखों से गुजर रहीं थीं वो सड़के, वो सारे मेट्रो स्टेशन, चहल-पहल से भरे  सड़क  के किनारों पर सजे धजे रेस्टोरेंट् , और उनका ‘जावल ‘स्टेशन वहीं पर स्थित उनका होटल…पर मोनमार्त्रे तो बहुत दूर था और वो चित्र कार ,उसकी पेंटिग बहुत दूर, इतनी दूर कि सारी सम्भावनाएं धूमिल हो जाएं ,अमृता की आंखों में उदासी तैर गई थी 
“अमृता! हम ‘एफिल टॉवर’ से गुजर  रहे हैं,  एक  बार  फिर से देख  लो जी भर कर…”
पेरिस की शान, फ्रांस की पहचान,विश्व की धरोहर एफिल टॉवर को उससे जुड़ी सारी यादों को  अमृता संजोने लगी।  बाहर की  यात्रा जीवन को ताजगी से भरती  है, और साथ-साथ चलती है  भीतर की भी यात्रा जहाँ मन की चेतना का उर्ध्वगमन ही उसका लक्ष्य होता है और जहाँ गणितीय समीकरण काम नहीं करते, नफा-नुकसान नहीं देखा जाता बस तृप्ति की अनुभूति ,कर्तव्य  बोध  ही सर्वोपरि  हो जाता है, ऐसा ही बोध, एक ऐसी ही यात्रा  से गुजर रही थी  वो। 
टैक्सी अब ठीक एफिल टॉवर के सामने पहुँच गई थी। अचानक अमृता ने कहा – 
” हर्षित! बस एक मिनट टैक्सी रोकना यहाँ, मैं अभी आई “
” अमृता क्या कर रही हो…देर हो जाएगी ..”
“…बस अभी आई “
अमृता  दौड़ते हुए कर एफिल टॉवर के पास एक पल रुकी और फिर उस गलियारे में पहुँच गई जहां फ्रांस की कला  हिलोरे  मार रही थी,  फ्रांस की संस्कृति  को रूपायित  करती पेंटिंग्स  ,कई सारे स्केच और था एक चित्रकार  वैसा ही लाल स्कार्फ और हैट  पहने   ।मोनमार्त्रे  और  वो चित्रकार जैसे यहीं उतर आए हों  ।  आज  अमृता  को कोई गणित नहीं लगाना था… जिंदगी  गणित से केवल  चली भी कहाँ है  ,उसने उस चित्रकार को याद किया और जोर से चिल्लाते हुए कहा –
” बोंजोर “
 
डॉ जया आनंद 
व्याख्याता, स्वतंत्र लेखन 
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4 टिप्पणी

  1. संवादों से प्रारंभ ,आपकी मुस्कुराहट की तरह ही बहुत प्यारी सी लगी आपकी कहानी जया जी!
    यह यात्रा वर्णन ज्यादा लगा,हालांकि सही मायने में इसे यात्रा वर्णन कहना पता नहीं ठीक होगा कि नहीं , पर हम भी आपकी कहानी के साथ ही फ्रांस को घूम लिए। फ्राँस के प्राकृतिक सौंदर्य ,साहित्य प्रेम, कला प्रेम और वहाँ की संस्कृति को समझ पाए।
    और बाकायदा आपकी नायिका को आप ही मानकर आपके साथ-साथ घूमते रहे, महसूस करते रहे।
    पुरुषों में शायद धैर्य की कमी होती है। लेकिन अपनी-अपनी रुचि की बात भी रहती है।
    आप अपना स्केच नहीं ला पाए यह दुख तो हमें भी रहा ।उसे भूलना आसान भी नहीं था।
    सबसे अच्छा जो लगा वह है आखिरी में आपका टैक्सी से उतरकर दौड़ते हुए जाना और जोर से बोंजोर चिल्लाना।
    आपके साथ फ्रांस घूमना बहुत अच्छा लगा। आपने तो दिनों के हिसाब से घूमा, पर हमें देखिये। पढ़ते -पढ़ते आपके साथ घूमें वह भी बिना किसी खर्च के और लिखते हुए भी उस आनंद को महसूस करते रहे।
    बहुत-बहुत बधाइयाँ आपको इस रचना के लिए।
    प्रस्तुति के लिए तेजेन्द्र जी का शुक्रिया और पुरवाई का तो आभार करना ही होगा। भले ही लंदन नहीं घूमे लेकिन फ्रांस तो घुमवा ही दिया पुरवाई ने।

  2. यूँ लगा कि जैसे मैं भी अमृता का हाथ थामे थामे पेरिस घूम रही हूँ ..अजीब सी झुरझुरी महसूस होने लगी..कहानी ख़त्म हुई तब महसूस हुआ कि ये महज़ एक कहानी थी और मैं एक पाठक..धन्यवाद जया ये कहानी पढ़वाने के लिए

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