Sunday, September 8, 2024
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डॉ मुक्ति शर्मा की कहानी – ताली गाली

“सुधा मुबारक हो तुम्हारे घर बेटी ने जन्म लिया है, बेटियां किस्मत वालों के घर में ही पैदा होती हैं।” 
“आपको भी मुबारक हो!”
मोहन ने बेटी को जब गोद में लिया तो उसके चेहरे पर चमक आ गई। …मेरी बेटी मेरे और परिवार का नाम रोशन करेगी बेटियां लक्ष्मी का रूप होती है। 
“पंडित जी हमारी बेटी का नामकरण कीजिए…!” घर में सब बहुत खुश थे मिठाई और पुलाव बन रहा था। सारे रिश्तेदार घर में आए हुए थे घर में बहुत रौनक थी।
“इसके नाम का पहला अक्षर ‘म’ है… अब आप बताएं क्या नाम रखना है?” 
सुधा ने धीरे से फुसफुसाते हुए कहा, “सुनिए जी मधु कैसा रहेगा?”
“मधु तो बहुत बढ़िया नाम है आज से इसका नाम मधु है।” 
“हां हां… मधु नाम बहुत अच्छा है आज से इसका नाम मधु है।”
मधु धीरे-धीरे बड़ी होने लगी, उसका दाखिला स्कूल में करवा दिया गया। परिवार के सब लोग बहुत खुश थे मधु पढ़ने में बहुत होशियार थी, 
जब मधु हाई स्कूल में पहुंची तो उसके हाव-भाव में परिवर्तन दिखाई देने लगा। उसकी चाल बदल गई। स्कूल में बाकी लड़कियां और लड़के मधु से किनारा करने लगे, यह बात मधु को अंदर ही अंदर चुभने लगी।
उसने यह बात अपनी मां को बताई की मां सब बच्चे उससे अलग-थलग रहते हैं… कोई भी बच्चा उसके साथ नहीं बैठना चाहता। “मैं स्कूल नहीं जाऊंगी।”
“मधु ऐसा नहीं कहते… स्कूल तो तुम्हें जाना पड़ेगा। किसी के कुछ कहने से कोई फर्क नहीं पड़ता। 
“फर्क पड़ता है माँ… वे मुझे चिढ़ाते हैं कि तुम ना तो लड़का हो ना लड़की! लड़कों के साथ बैठतीं हूं तो कहते हैं लड़कियों के साथ बैठो और जब लड़कियों के साथ बैठतीं हूं तो कहते हैं लड़कों के साथ बैठ।… आखिर में किसके साथ बैठूं?”
“माँ, अगर स्कूल में पढ़ना है तो इन सब बच्चों का साथ बैठना तो जरूरी है ना? मगर ये तो मेरे साथ बैठना पसंद ही नहीं करते। तो मैं स्कूल में क्या करूं?”
“कोई बात नहीं… परेशान होने के ज़रूरत नहीं। कल मैं तुम्हारे साथ स्कूल चलूंगी और तुम्हारी टीचर के साथ बात करूंगी।” सुधा ने मधु को समझाया।
अगले दिन सुधा और मधु दोनों स्कूल गए। सीधे प्रिंसिपल के कमरे में पहुंचे।
“आइये सुधा जी, कैसे आना हुआ?”
“मैम, बच्चे मधु को स्कूल में बहुत तंग करते हैं… इसे अपने पास बैठने तक नहीं देते।”
“अरे ऐसा कैसे हो सकता है! आप परेशान न होइये और निश्चिंत होकर घर जाइए। मैं क्लास के बच्चों से बात करूंगी।” सुधा जी तो घर वापिस चली गईं मगर प्रिंसिपल सोच में डूब गई। वह स्वयं नोट कर रही थी कि मधु और बच्चों से कुछ अलग दिखाई देती थी। मगर मामला यहां तक बढ़ जाएगा, उन्होंने नहीं सोचा था। वे समय निकाल कर क्लास में गईं।
“बच्चो आपको यह बताना चाहती हूं कि हम सब स्कूल में भाई-बहन हैं और हमें एक दूसरे के साथ मिलकर रहना चाहिए। इसीलिए हम स्कूल में यूनिफार्म पहन कर आते हैं कि सब बच्चे स्कूल में एक समान ही दिखें।”
बच्चे एक स्वर में बोले, “यस मैम!” 
प्रिंसिपल मैम ने मधु की ओर देखा, “अरे मधु, तुम अकेली आख़री डेस्क पर क्यों बैठी हो?”
मधु बिना कुछ बोले कभी प्रिंसिपल मैम को देखती तो कभी क्लास के बच्चों को।
“डरो नहीं मधु, तुम्हें कोई दिक्कत है क्या क्लास में?”
“जी मैम, क्लास में मुझसे कोई बात नहीं करता। अपने पास बैठने नहीं देता।” मधु ने झिझकते हुए कहा। 
“क्यों बच्चो, आपको मधु से क्या दिक्कत है? आप उससे बात क्यों नहीं करते?”
“मैम बहुत दिनों से हम आपको एक बात बताना चाह रहे हैं… मधु हम जैसी नहीं है। ये कुछ अलग है। दरअसल ये तो एक किन्नर है।” एक बच्ची ने स्पष्ट बोलते हुए पूरी क्लास की बात कह दी।  
प्रिंसिपल मैम इस अचानक कही गई बात से हतप्रभ रह गई। “ऐसा नहीं कहते बेटा। किन्नर भी तो हम जैसे इन्सान ही होते हैं। हम सब को ईश्वर ने ही तो बनाया है। जब हम ईश्वर द्वारा बनाई गई हर चीज का आदर सत्कार करते हैं तो हमें मधु के लिये भी स्नेह बनाए रखना चाहिये।”
मधु उस दिन तो आराम से क्लास में बैठ गई। मगर अंदर ही अंदर से वह अपने आप से संघर्ष कर रही थी।… आखिर मुझसे इतनी नफरत क्यों?… मेरा कसूर क्या है?… मैंने कौन से पाप किए हैं?… आखिर में भी तो इंसान हूं!
यह बात पूरे गांव में फैल गई कि मधु किन्नर है। किन्नरों की पूरी टोली मधु के घर पहुंच गई। “यह बच्चा हमारा है हमें दे दो। आपका इस पर कोई अधिकार नहीं।” 
सुधा जोर-जोर से चिल्लाने लगी, “क्यों अधिकार नहीं है? मेरी बच्ची है मैंने इसे नौ महीने अपनी कोख में रखा है! आप होते कौन है मेरी बच्ची को ले जाने वाले मैं अभी पुलिस को फ़ोन लगाती हूं।” 
“देखिये बहन जी आप पुलिस बुलाएं या मिलिट्री, हमें इससे कोई फ़रक नहीं पड़ता। यह बच्चा हमारा है और हम इसे अपने साथ लेकर ही जाएंगे।”
मधु की दो बड़ी बहनें थी उन्होंने मधु का हाथ थाम लिया, “हम अपनी बहन को नहीं जाने देंगे। यह हमारी बहन है यह हमारे साथ ही रहेगी।” 
“देखो बिटिया, ऐसे नहीं बोलते!” उस किन्नर ने ताली बजाते हुए कहा, “ये अब हमारी बेटी है और हमारे पास ही रहेगी।”
चारों ओर हवा में जैसे उस किन्नर की ताली की गूंज सुनाई दे रही थी। मधु सोच रही थी क्या अब उसे भी ताली बजानी पड़ेगी? उसका घर परिवार सब छूट जाएगा! ठीक है मैं वहीं आश्रम में ही रहूंगी। क्योंकि वहां मेरे जैसे बहुत से लोग होंगे मेरी भावनाओं की कदर करेंगे मुझे समझेंगे मुझसे प्यार करेंगे। यहां तो सब मुझसे नफरत करते हैं मेरी कोई कदर नहीं करता। 
उस रात मधु ने अपने कानों से सुना  था। जब पिताजी मां को कह रहे थे तुमने तीन-तीन लड़कियां पैदा कीं। ओहो लड़कियां तो दो ही है एक तो किन्नर है। ना तो हमारा वंश चलेगा और समाज में बदनामी भी होगी कि घर में किन्नर पैदा हुई है। 
पिताजी की यह बात मधु के कानों में चुभ रही थी… इससे बेहतर तो वह ताली है। जो मेरे लिए गाली बन चुकी थी।
“चलो पीछे हटो छोड़ो इसका हाथ हमें जाने दो।” 
सुधा का रो- रो के बुरा हाल था! “मेहरबानी करके मेरी बेटी पर तरस खाओ… इसको छोड़ दो मैं अपनी बेटी के बिना जिंदा नहीं रह पाऊंगी।” 
“देखिये बहन, अब यह आपकी बेटी नहीं… यह हमारी अमानत है हम इसके भविष्य की चिंता करेंगे और हम इसे पाल-पोस कर बड़ा करेंगे। आपको इसकी कोई परेशानी नहीं उठानी होगी। आप निश्चिंत हो जाइए।”
और मधु मूक प्राणी की तरह उनके साथ चल पड़ी। वहां उसकी मुलाकात रिमझिम से हुई। रिमझिम ने अपनी कहानी सुनाते हुए कहा कि “मैं और मेरा भाई थे। मेरे पड़ोसी मुझे बहुत ताने कसते थे… जिसके कारण मैंने खुदकुशी करने की कोशिश की। मैंने ब्लेड से एक दिन अपनी नाड़ी काट ली थी, परंतु मैं बच गई। मौत ने भी मेरा साथ नहीं दिया।” 
“रिमझिम तुम्हें पता है मेरे साथ भी स्कूल वाले और घर वाले बहुत बुरा व्यवहार करते थे पर कोई बात नहीं अब हम यहां पर मजे करेंगे और आराम से रहेंगे।” 
रिमझिम ओर मधु में अच्छी दोस्ती हो गई दोनों एक दूसरे को अपनी छोटी-छोटी बातें बताने लगी। रिमझिम और मधु के पढ़ने की व्यवस्था आश्रम में की गई और उन्हें संगीत सिखाया जाता। नृत्य कला भी सिखाई जाती। 
“जैन साहब के घर लड़का पैदा हुआ है।” किन्नर गुरु ने यह बात रिमझिम और मधु को बताई।  “आप दोनों जाएगी नेग के लिए।” 
“जैन साहब बहुत-बहुत मुबारक हो आपके घर बेटा पैदा हुआ है आज हम इक्कीस हज़ार से काम नहीं लेकर जाएंगे। आपके पास तो भगवान का दिया हुआ सब कुछ है।”
“जैन साहब आपके पास और तो सब कुछ था, सिर्फ बेटा ही नहीं था अब वह भी हो गया आप अब दिल खोलकर पैसा दीजिये।”
“पैसे पेड़ पर लगे होते हैं दिल खोल कर दे। जितना तुम्हारा हक बनता है उतना दे देंगे।” 
“हमने कौन सा आपसे आपका बंगला मांग लिया है। इक्कीस हजार ही तो मांगा है।” 
“इक्कीस हजार बहुत बड़ी रकम होती है यह लीजिए दस हजार और बच्चे को आशीर्वाद देकर यहां से जाएं।”
“देखिये जैन साहब, अगर आपने ज्यादा मोल भाव करने की कोशिश की तो अभी हम यहां पर कपड़े उतार देंगे।” 
“छी -छी आप लोग कैसी बातें कर रहे हो! आप लोगों को शर्म नहीं आती ऐसी बात करते हुए जुबान संभाल कर बात करें और यह लीजिए दस हज़ार और यहां से चलते बनिए।”
“हम अपने हक का पैसा मांग रहे हैं कोई भीख नहीं मांग रहे मधु ने कहा।”
मधु और रिमझिम जोर-जोर से ताली बजाने लगी। 
“दफा हो जाओ हमारे घर से आपको कोई शर्म नहीं है आप लोगों ने इस चीज को भी बिजनेस बना दिया है।”
“हमारे पास नौकरी का कौन सा साधन है हमारे पास तो एकमात्र साधन यही है कि जब किसी के घर में कोई खुशी की बात होती है तो हम जाते हैं हमने कौन सी बड़ी रकम मांग ली।”
“यहां से निकल जाओ नहीं तो मैं अभी पुलिस को बुलाऊंगा।” तभी मधु अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए।  नास पीटे तेरा सर्वनाश हो जाए तुझे कीड़े पड़े। तू हमारा हक खा रहा है।”
“दफा हो जाओ यहां से ताली वाली मत बजाओ यहां पर।” 
जैन साहब ने उन्हें धक्के मार कर घर से बाहर निकाल दिया उस दिन अहसास हुआ की ताली कितनी बड़ी गाली है हमारे लिए। जैन साहब ने दस हजार हमारे मुंह पर दे मारा और हम उन पैसों को लेकर आश्रम लौट आए।
रिमझिम कहे जा रही थी, “ आखिर हमारी जिंदगी में कौन सा सुख है ना परिवार का ना समाज का। मधु अगर तूने उस वक्त सलवार ना उतरी होती तो हमें यह दिन नहीं देखना पड़ता।”
“यह साले लोग होते ही हरामी हैं जब तक इनको अपना नंगा पन दिखाओ ना तो यह लोग सुधरते नहीं है।” मधु गुस्से में उबल रही थी। 
“हमें बहुत बड़ी गलतफहमी है कि लोग हमसे प्यार करते हैं नहीं लोग हमसे प्यार नहीं करते ताली भी हमारे लिए गाली से काम नहीं है… इसी ताली के कारण हमें लोगों के ताने सुनने पड़ते हैं।”
“चुप हो जाओ मेरी बच्चियो… रोने की जरूरत नहीं है… हमें समाज को दिखाना है… हमें खूब मेहनत और परिश्रम कर आगे बढ़ना होगा ताकि समाज हमारे कदमों में झुके हमें किसी से कम ना समझे।”


डॉ. मुक्ति शर्मा
डॉ. मुक्ति शर्मा
संपर्क - 9797780901
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3 टिप्पणी

  1. सुंदर शब्द रचना, महत्वपूर्ण विषय का चयन. यह एक सामाजिक समस्या है ।
    सभी को ईश्वर ने निर्माण किया है यह बात लोगों को जागृत करने में सहायक है ।
    बधाई हो!
    शुभकामनाएँ!

  2. जी, तभी इस मुद्दे को उकेरा,मेरा उपन्यास भी है श्रापित किन्नर

  3. बहुत अच्छी कहानी है। आप अपनी अन्य कहानियाँ भी पढ़ाएं।
    हार्दिक शुभकामनाएँ

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