Tuesday, September 17, 2024
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कात्यायनी सिंह की कहानी – औरत

किस सिरे से इस कहानी को शुरू करूं–
ऋतुएं अपना भेष बदलती रहती है। बादलों के बीच झांकते कई अक्स भी अपना रूप बदलते रहते हैं।और सबसे ज्यादा इंसान अपना व्यवहार बदलता रहता है। 
अठारह साल की उम्र में ब्याह और फिर बीस- बाइस की उम्र में दो बच्चों की माँ बन जाना , अल्हड़पन और जवानी रिमझिम के हिस्से में कभी नहीं आई। पति शराबी था । संयुक्त परिवार था। सबकी बातों को सुनती, सहती। तानों और व्यंग्य बाणों को सहते सहते उसका मन सबसे उचाट हो गया था।
आज भी उसको याद है । ब्याह के चौथे दिन ही पति का दुर्व्यवहार। 
रात के ग्यारह बज रहे थे। अंजुम अभी तक घर नहीं लौटे थे। घर के सभी सदस्यों से रिमझिम पूछ चुकी थी। सभी का यही कहना था कि आ जायेंगे कुछ देर मे। रिमझिम का दिल जोर जोर से धड़क रहा था। तभी दरवाजे की घंटी बजी । वो बेतहाशा दौड़कर दरवाजा खोली, सामने अंजुम शराब के नशे में धुत्त थे। उसे कुछ समझ नहीं आया। रोते हुए बोली,” आप शराब पीकर आये हैं?”
“हाँ, पीकर आया हूँ । तेरे बाप के पैसे का नहीं पीकर आया हूँ।” इतना कहकर झन्नाटेदार थप्पड़ से रिमझिम का गाल लाल हो गया।
उसकी डबडबाई आँखों में अपने माँ पिता का स्नेहिल चेहरा धुंधलाने लगा। उसे लगा, अगर दीवाल का सहारा नहीं लिया, वह चकराकर वही गिर जायेगी
तभी ससुर दौड़कर आये और रिमझिम को सास के पास बैठाकर लड़के के पास चले गए। 
सास ने कहा,” अब तुम्हें ही इसे सम्भालना है बहू। बहुत पीता खाता है। “
” आप लोग जान रही थी तो इनकी शादी क्यों कराई?”, रिमझिम की बेबसी उसकी आँखों से बह रही थी। 
” जी छोटा मत करो , कोई न कोई रास्ता निकल आयेगा। तुम आ गई हो। अब सब सँभाल लोगी। “, सास की रुंधी हूई आवाज रिमझिम को असमय ही परिपक्व कर गई। 
मारपीट गाली गल्लौज अब रोज की बात हो गई थी। 
एक दिन अंजुम दिन में ही पीकर आ गया। बच्चे घर में ही थें। रिमझिम बच्चों को लेकर ऊपर के कमरे में चली गई। कुछ देर बाद अंजुम आया और दहाड़ते हुए बोला,” तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई । मुझसे बगैर पूछे ऊपर आने की। बकरा लाया हूँ ।जाओ उसे पकाओ।। और हाँ मेरे चार दोस्त भी साथ में हैं।”
रिमझिम बच्चों के सामने किसी तरह का बखेड़ा नहीं चाहती थी। वो चुपचाप नीचे चली गई।  
अंजुम भी साथ में आ गया और बच्चे भी।
रसोईघर में नम आँखों से रिमझिम प्याज काटने लगी कि तभी अंजुम ने उसे पकड़कर बोला ,” रो रही हो? बकरा बनाने को बोल दिया इसलिए?”
रिमझिम गुस्से से उसे देखने लगी। अंजुम बोला,” आँखें नीची कर बेशर्म औरत।”
लेकिन रिमझिम उसे उसी तरह देखती रही।
तभी बालों से पकड़कर रिमझिम को अंजुम घसीटने लगा। बच्चे सहमे दरवाजे से छुपकर देख रहे थें। अपना अपमान अपने ही बच्चों के सामने नहीं देख पाई । वो अचानक शेरनी की तरह झपटी और अंजुम को वहीं पटककर घूसों से प्रहार करने लगी। वो चिल्लाते जा रही थी, ” देख मेरा साहस , देखना चाहता था न! अब बहुत हो गया तुम्हारा वहशीपन, अब मैं दिखाऊंगी बगैर पीये अपना वही रूप।”
अंजुम का नशा कपूर की तरह उड़ गया था। ससुर सास , जेठ जेठानी सभी आवाज सुनकर आ गए थें। ससुर की कड़कड़ाती आवाज सुनाई दी,” यही कमीनी है। इसी के कारण घर में कलह हो रही है।”
इतना सुनते ही रिमझिम दहाड़ उठी ,” अभी तक मैं ही कलह कर रही थी , है न! आपका बेटा संस्कारी है। जब मैं पीटी जाती थी तब तो आपलोग खामोश रहते रहे और आज जब मैं अपने लिए , अपने आत्मसम्मान के लिए आवाज उठा रही हूँ तो आप सबकी निगाह में मैं कमीनी हो गई। ” 
 ” चुप कर बेशर्म औरत, आजतक तेरे जैसी औरत कहीं नहीं देखा। बेहया कही की। अंजुम ठीक करता है । अगर तुम्हारे ऊपर लाठी डंडा न चले तो तुम बेहयाई पर उतर आओगी।”
तड़पकर रिमझिम उठी और हाथ का डंडा ससुर पर फेंक मारा। सारे लोग अवाक ताकते रह गए। किसी ने इस दृश्य की कल्पना तक नहीं की थी । 
“अंजुम अपना परिवार लेकर तुम अलग हो जाओ। मुझसे अब ये सब बर्दाश्त नहीं होगा।” ससुर धीमी आवाज में बोले।
“एक शर्त पर, घर मेरे नाम पर होगा।”, रिमझिम की हठी आवाज हवा में तैर गई। 
बंटवारा हो गया। अंजुम अपने परिवार के साथ इस घर में आ गया। पर पीना नहीं छूटा और छूटी नहीं मार पीट।  
जेठ के बेटे की शादी थी। रिश्तेदारों की भीड़ से घर अटा पड़ा था। रात नौ बजे रिमझिम सबको खाना खिला रही थी । अंजुम आया और हाथ पकड़कर खींचने लगा। रिमझिम ने झटके से हाथ छुड़ा लिया कि तभी हवा में लहराता हाथ उसके गालों पर पड़े।वो गुस्से में बदहवास अंजुम पर टूट पड़ी। क्रोध से दाँत किटकिटाते हुए बोली,” सम्भल जाओ अंजुम , वर्ना अंजाम बहुत बुरा होगा।”
परिवार के कुछ लोग आकर रिमझिम को साथ ले गए। 
चार सासों के बीच रिमझिम बैठी है।,” बहू तुमने अच्छा नहीं किया अपने पति को मारकर। हमारे धर्म में पति पर हाथ उठाना पाप है। जिस पति की लम्बी उम्र के लिए तुम तीज त्योहार करती हो उसको तुम कैसे मार सकती हो। तुम्हें नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी ।”
” नर्क की भी चाह नहीं रही अब मेरी। इससे बुरा और क्या हो सकता है किसी के लिए। पच्चीस सालों से प्रताड़ित होती आई हूं। अब नहीं और कभी नहीं। “रिमझिम की दृढ़ लेकिन काँपती आवाज सुनाई दी।
“हेहर हो गई है रिमझिम।”, उसकी अपनी सास ने धीरे से कहा।
वक्त रेत की तरह फिसलता रहा । 
बच्चों को एक खास वातावरण में रखने की जिद में रिमझिम जिद्दी से और जिद्दी होती गई। दोनों बच्चे काबिल थें। अच्छी परवरिश और रिमझिम के दिये संस्कार से बड़ा बेटा डाॅक्टर और छोटा बीडीओ बन गया।
बच्चों के उच्च पद पर जाते ही सारे रिश्तेदारों की आँखों में रिमझिम के लिए एक खास स्थान बन गया। ससुर भी अपनी इस बहू के कायल हो गए। पर रिमझिम के दिल में किसी के लिए कोई सम्मान नहीं बचा था। वो उद्दंड या उजड्ड नहीं थी। सबको आदर स्नेह देती थी। पर दिल के अंदर अजीब से भाव भरे हुए थे। 
बड़े बेटे की शादी की तैयारी में व्यस्त रिमझिम, खुद सबकुछ कर रही थी। उसे रिश्तेदारों का कोई सहयोग नहीं चाहिए था । बेटे को देखती और बलिहारी जाती। उसके लिए अपने बच्चों की खुशियों से ज्यादा कुछ नहीं था। सास बनने की चाह उसके चेहरे पर स्निग्ध मुस्कान बिखेर रही थी। अंजुम में बदलाव आया था पर अकड़ अभी भी बाकी थी। 
शराब कम हुई थी पर पूरी तरह खत्म नहीं हुई थी। रिमझिम नहीं चाहती थी कि बेटे की शादी में कोई भी शराब पीकर माहौल को खराब करे। सबसे ज्यादा तो डर उसे अपने पति से ही था।
आज शाम बेटे की बरात जाना है। रिमझिम का मन उथल पुथल से भर रहा था। मन ही मन उसने एक निर्णय लिया। दोपहर दो बज रहा था। रिमझिम अपने पति के पास गई और आग्रह स्वर में बोली।,” शराब पीकर कोई बारात नहीं जायेगा, यह मेरा अनुरोध है तुमसे।”
“तुम बावली हो गई हो क्या? पीना पिलाना राजपूती शान है।” 
“पत्नी को पीटना और बच्चों को दुत्कारना भी शायद राजपूतों के लिए शान की बात है, है न!,” 
” उन सब बातों को अभी भूल जाओ रिमझिम। वैसे तुम किस किसको रोकोगी। अगर ऐसा करोगी तो शायद कोई बरात ही नहीं जाए।”
“न जाए कोई। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। पर शराब पीकर कोई नहीं जाएगा। यही मेरा अंतिम निर्णय है। बच्चें भी सहमत हैं मुझसे।”
अंजुम अजीब उहापोह में फंस गया। दोस्त और कई रिश्तेदार बगैर शराब कहीं जाते ही नहीं। दोस्तों तक बात पहुंची। 
उन्हें झटका लगा। ,” तुम मेहरारू भक्त हो गए हो क्या अंजुम। तुम उनकी बात क्यों मानोगे। मालिक तो तुम हो। तुम जैसा चाहोगे भाभी जी को वैसा ही करना होगा। औरतों का घर पर राज नहीं चलना चाहिए। आओ पीकर चलते हैं । देखते हैं कि भाभी क्या कर लेती हैं।”
दोस्तों के हुंकार के सामने अंजुम भी शेर हो गया और शराब का दौर शुरू हो गया ।
इधर परिछन का गीत गाया जा रहा था।
रिमझिम की आँखें खुशी से नम थी। माँ को खुश देखकर विनय का भी मन खुशी से झूम रहा था। आज बरसो बाद माँ के चेहरे पर सुकून था। 
तभी अंजुम आया और दूल्हा के गाड़ी में बैठ गया। रिमझिम तमतमा उठी। मुँह से उठते शराब की गंध उसके सांसों को अवरूद्ध कर रही थी।
अचानक वो दहाड़ी,” अंजुम गाड़ी से नीचे उतरिए। आप बारात नहीं जाइयेगा। और जिस जिसने शराब पी रखा है उन सबसे भी मेरा अनुरोध है कि वो अपने अपने घर चले जाए।”
अंजुम गाड़ी से उतरा और तमतमाते हुए बोला , ” बहुत गर्मी चढ़ गयी है क्या शरीर में । सब उतार देंगे देखता हूं कौन मुझे बैठने नहीं देता है।”
अंजुम गाड़ी में बैठने गया तभी विनय ने गाड़ी का दरवाजा बंद कर लिया और बोला।,
“पापा आप लोग बारात नहीं जाएंगे। “
“मैं तेरा बाप हूँ।” , अंजुम चीखा!
“मैं सिर्फ माँ का बेटा हूँ।”
“रिमझिम मान जाओ। लगभग सभी ने पी रखी है। अगर तुम्हारी यही जिद रही तो इक्का दुक्का लोग ही बारात जा पाएंगे। और अगर अंजुम नहीं गया तो शादी की रस्म कौन निभाएगा?”,ससुर का आग्रह भी रिमझिम ने ठुकरा दिया
“मैं निभाऊँगी। जैसे अभी तक बच्चों की परवरिश करती आई हूँ। और रहा सवाल इक्का दुक्का लोगों के बारात जाने का तो, यही बेहतर है। मेरी बहू के घर कोई भी नशेड़ी गंजेड़ी नहीं जायेगा।”
रिमझिम दुल्हे की गाड़ी में बैठ गई। गाड़ी रफ्तार पकड़ चुकी थी। सभी भौचक्के होकर एक औरत का दुस्साहस देखते रह गए 
कात्यायनी सिंह
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
कृतियां– कहानी संग्रह ‘अक्स’
कविता संग्रह–‘मैं अपनी कविताओं में जीना चाहती हूँ
हास्य-व्यंग्य–जलनखोर प्रेमी नटखट प्रेमिका
सम्पर्क– गीताघाट कालोनी
गोकूलम स्कूल के पास
सासाराम, बिहार
पिन— 821115
मोबाइल– 9905203653
ईमेल– [email protected]


कात्यायनी सिंह
कात्यायनी सिंह
कादम्बनी, पुष्पवाटिका , दस्तक टाइम्स ,मधुराक्षर, प्रभात खबर, हिंदुस्तान, गृहलक्ष्मी पत्र पत्रिकाओं में समय समय पर रचनायें प्रकाशित। प्रकाशित किताब -- अक्स ( कहानी संग्रह ) , मैं अपनी कविताओं में जीना चाहती हूँ (कविता संग्रह )। संपर्क - [email protected]
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4 टिप्पणी

  1. अच्छी कहानी है कात्यायनी जी! औरतों को अपने प्रति होने वाले इस तरह के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठानी ही चाहिये। आजकल शराब फैशन से होते हुए आदत में शुमार हो गई है।घर के घर बर्बाद हो रहे हैं। आपकी कहानी सबक की तरह है। बहुत-बहुत बधाइयाँ आपको।

  2. ये हुआ सही सबक।शराबी किसी का न पति होता है न बेटा न बाप।वो सिर्फ शराबी ही होता है।इतने सालों भी बेकार ही झेला।एक अच्छी कथा के लिए बधाई कात्यायनी जी।

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