Sunday, September 8, 2024
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कीर्ति श्रीवास्तव की कहानी – नयी सुबह

आज का मौसम बड़ा खुशगवार था। गुलाबी सर्दी का मौसम था। चहल-पहल सी लगी हुई थी। शहर में चर्चा थी एक ससुर अपनी परित्यक्ता बहू की शादी करा रहे हैं। शहर की वो खुशनसीब दुल्हन अंजू थी।
घर में बारात के स्वागत की तैयारी में मि. शर्मा व्यस्त थे। आज उनकी बेटी अंजु की शादी थी। बारातियों को कोई परेशानी न हो बस यही चिंता उन्हें खाए जा रही थी। जैसे ही किसी काम के लिए अंजू के पापा परेशान होते। मिस्टर परेश कहते ‘अरे शर्मा जी, परेशान न हों सब हो जायेगा!’ अंजू के पूर्व ससुर ही आज उसके पापा का दायित्व निभा रहे थे।
ये जिंदगी है जो कितने ही मोड़ से निकलती है। हर रोज कोई सपना दिखता है, कोई नयी सुबह की तलाश में निकल जाता है। बारात की निकासी एक किलोमीटर दूर से निकल रही थी। लड़के वालों में बड़ा जोश था। सब बड़े खुश थे। अंजू की मम्मी न जाने क्यों उदास थी। उन्हें चिंता थी कि कहीं शादी में कोई विघ्न न डाल दे। वो अंजु के चेहरे पर भी वही डर देख रहीं थीं। पर उसे आँखो से इशारा करतीं कि घबरा नहीं सब ठीक हो जाएगा। वो भी झूठी मुस्कान दे कर उन्हें चिंता मुक्त होने का आश्वासन दे देती थी।
सजी-संवरी अंजु खुद को शीशे में निहार रही थी। खुद को शीशे में निहारते-निहारते उसे डेढ़ साल पुरानी सजी-संवरी अंजु दिखने लगी। पहले भी ऐसे ही सजी थी ऐसे ही खुद को शीशे में निहार कर शरमा रही थी और सोच रही थी कि मैं कितनी खूबसूरत लग रही हूँ। बारात आने वाली थी घर में हलचल थी। सभी इधर-उधर काम में व्यस्त थे।
मम्मी-पापा ने अंजु के लिए बिजनेसमैन लड़का देखा था। जो सुंदर और पैसे वाला था। उनकी लड़की को कोई परेशानी नहीं होगी। उनकी लड़की सुखी रहेगी। खुद का मकान, माता-पिता के समान सास-ससुर कोई भाई-बहन नहीं मतलब कोई जिम्मेदारी नहीं बेटी राज करेगी राज। इसके अलावा माता-पिता को भला क्या चाहिए होता है।
बेंड बाजे की आवाज ज्यों-ज्यों दरवाजे पर सुनाई दे रही थी। त्यों-त्यों अंजु की दिल की धड़कने बढ़ रहीं थीं। बारात दरवाजे आई रस्मों-रिवाजों के साथ अंजु की शादी साहिल से हो गई और अंजु विदा होकर हजारों सपने मन में लिए ससुराल चली गई।
नई नवेली दुल्हन अंजु बहुत खुश थी। सभी उसका बहुत ध्यान रखते थे। पर जिसको उसका खास ध्यान रखना चाहिए था, उसे अंजु की कोई फिक्र ही नहीं थी। जिन एबों के बारे में अंजु के पिता नहीं जान पाए थे वो अंजु दो दिन में ही जान गई। शराब पीना, जुआ खेलना और दूसरी औरतों के साथ रात गुजारना। यही साहिल का रोज का काम था। अंजु की सवाल करती नजरों से उसके सास-ससुर नजरें चुराते थे। अंजु उन सवालों को लिये पग फेरे के लिए अपने मायके तो आई पर घर वालों को अपने दु:ख की भनक भी नहीं लगने दी। ‘साहिल बिजनेस के सिलसिले से बाहर गया है’ ऐसा कहकर ससुर अपने साथ अंजु को घर ले आए।
ऐसे ही दिन गुजरते गये शादी-शुदा जिंदगी के जो सुनहरे सपने लेकर अंजु ससुराल आई थी वो तो जाने कबके चकनाचूर हो गये थे। आखिर दो महीने बीतने के बाद अंजु ने अपने ससुर से पूछ ही लिया- ‘पापा जी, यदि ये इस तरह के हैं, तो आपको इनकी शादी नहीं करनी थी। मेरी जिंदगी का अब क्या भविष्य?’
वे कुछ देर मौन रहे फिर बोले- ‘बहू, मुझे लगा था कि शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा। किन्तु मुझे नहीं पता था कि साहिल में कोई बदलाव नहीं आएगा। मुझे माफ कर दो बेटा। मैं तुम्हारा दोषी हूँ।’ वे हाथ जोड़े अंजु के सामने नजरें झुकाए खड़े थे।
अंजु बिना कुछ बोले अंदर चली गई। शादी के बाद साहिल के माता-पिता सुबह-शाम साहिल को डाँटते, समझाते फिर भी साहिल कुछ सुनने को तैयार ही नहीं था। वह एक ही बात कहता- ‘मैं तो ऐसा ही था और ऐसा ही रहूँगा’ यह कहकर चला जाता। आज तो साहिल ने सभी सीमाएँ पार कर दीं थीं उसने अंजु पर हाथ उठाया। वह कुछ न बोली। फिर तो ये मानो रोज का काम हो गया था।
आज साहिल के पिता ये सब देख न सके और साहिल को उतना ही मारा जितना कि उसने अंजु को पिछले तीन महीनों में मारा था या शायद उससे भी अधिक! अंजु को दूसरे कमरे में जाने को बोल दिया। अगली सुबह साहिल गुस्से में गया तो दो दिन तक लौटा ही नहीं। साहिल का ये रवैया उसके पिता को नागवार गुजर रहा था। वहीं अंजु को दिन-रात रोते देख उन्हें साहिल पर ओर अधिक गुस्सा दिला रहा था। एक दिन उसके पिता ने अपनी पत्नी से कहा- ‘मैने एक निर्णय लिया है जिसमें मैं किसी की राय नहीं लूँगा, बस निर्णय सुनाऊँगा।’ वे घबरा गईं आखिर क्या होने वाला है। उन्हें ये तो पता था कि निर्णय तो साहिल को लेकर ही होगा।
जब दो दिन बाद साहिल आया तो उन्होंने साहिल को घर से जाने को कह दिया और अपने संबंधों को खत्म करने की बात भी बोल दी। उन्होंने कहा- ‘यदि तुझे यहाँ रहना है तो बहु के साथ अच्छे से व्यवहार करना होगा नहीं तो तेरा हमारा कोई रिश्ता नहीें।’ साहिल घर छोड़ कर चला गया। माँ को भी शायद उसके पिता का यह निर्णय सही लगा इस कारण वह भी चुप रहीं। किन्तु माँ का दिल तो माँ का ही होता है। बेटे को जाते देख वह अपने आँसुओं की धार को रोक न सकीं।
अंजु से उन्होंने कहा ‘बेटा, आज से तेरा साहिल के साथ कोई रिश्ता नहीं। मैं साहिल से तेरा तलाक जल्दी ही करवा दूँगा। हमने तुमसे और तम्हारे घर वालों से अपने बेटे की सच्चाई छुपाई तो हम ही तुम्हें इस दल-दल से निकालेंगे भी।’
अगले ही दिन अंजु के मायके जाकर साहिल के पिता ने अंजु के माता-पिता को सारी बातें सच-सच बता दीं। अंजु के माता-पिता पहले तो क्रोधित हुए और साहिल के पिता को बुरा-भला भी कहा। पर उससे ज्यादा वो कर भी क्या सकते थे। उन्हें चिंता थी तो बस अपनी बेटी की कि अब उसके भविष्य का क्या होगा? ‘शर्मा जी, आज आपके इस सच का मैं क्या करुँ? मेरी बेटी का जीवन तो बर्बाद हो ही गया।’
साहिल के पिता ने उनका दर्द समझ लिया था। ‘भार्गव साहब, आप ये चिंता न करें कि अंजु का क्या होगा। अंजु आपकी बेटी थी पर जिस दिन मैं उसे अपने घर ले गया उस दिन से वो मेरी बेटी हो गई। उसके अच्छे-बुरे की सारी जिम्मेदारी अब मेरी है।’
अगले ही दिन से साहिल के पिता अंजु और साहिल के तलाक की कार्यवाही में लग गये। वे जल्दी से जल्दी अंजु और साहिल का तलाक कराना चाहते थे। और साथ ही वह ये भी निर्णय कर चुके थे कि उनकी सम्पत्ति पर अब साहिल का कोई अधिकार नहीं रहेगा। वे इसके  भी कानूनी कागज तैयार करवाने में लग गये थे। साहिल को ये बात सहन नहीं हो रही थी। वो न तो अंजु को अपनाना चाहता था और न ही जायदाद से बेदखल होना चाहता था। इस कारण वो आये दिन घर पर आ कर लड़ाई-झगड़ा करता, पर साहिल के पिता को अब कुछ भी मंजूर नहीं था।
आखिरकार जीत उन्हीं की हुई। अंजु को तलाक मिला और बेटे को जायदाद से बेदखल कर दिया गया। पूरा परिवार खुश था। किन्तु अंजु के पिता को अब भी अंजु की फिकर सता रही थी।
इधर शर्मा जी का अब एक ही मकसद रह गया था, एक अच्छे से लड़के से अंजु की शादी कराना। उसकी शादी की बात सुन सभी भौचक्के रह गये। ‘मि.शर्मा, ये आप क्या कह रहे हैं? अंजु की दूसरी शादी? कौन करता है तलाकशुदा से शादी और कौन कराता है अपनी बहू की शादी?’ मि.भार्गव ने साहिल के पिता से कहा। ये बात जंगल में आग के तरह पूरे मौहल्ले और फिर पूरे शहर में फैल गई।
‘जिसको जो कहना है कह ले। कोई न कोई तो ऐसा होगा जिसे मेरी होनहार, संस्कारी बेटी दिखेगी न कि उसका तलाकशुदा होना।’ उन्होंने सुयोग्य वर की खोज शुरू कर दी। जहाँ जाते वहाँ निराशा ही हाथ लगती पर वह हिम्मत नहीं हारते। लोगों के ताने शायद उन्हें ओर हिम्मत देते थे। एक बार तो अंजु ने भी कहा, ‘पापा, मुझे आप लोगों के साथ कोई दिक्कत नहीं है। वैसे भी मैं चली जाऊँगी तो आप लोगों के साथ कौन रहेगा?’ उसकी बात सुन कर वे मुस्कुरा कर बोले- ‘बेटियाँ पराया धन होती हैं, उन्हें तो विदा करना ही पड़ता है।’
अगले दिन फिर वही पेपर में अच्छे लड़के का विज्ञापन देख चल दिये वर की खोज में। रोज भगवान के सामने हाथ जोड़ते और यही सोचकर घर से निकलते कि आज तो तलाश पूरी हो ही जाएगी। आज भी यही सोचकर पास के शहर में एक लड़के को देखने चल दिये उसी जोश और उमंग के साथ। आज मानो भगवान ने उनकी सुन ली वो जैसा लड़का अंजु के लिए चाहते थे राजेश वैसा ही था। उन्हें राजेश पसंद आया और उन्होंने उसे अगले ही दिन घर पर उन्हें आने का न्यौता दे डाला। उन्होंने अंजु के विषय में कोई भी बात छुपाई नहीं थी। यही बात तो राजेश के घर वालों को भा गई और वह अगले दिन अंजु से मिलने के लिए आने को तैयार हो गये।
आज वो बहुत खुश थे। हाथ में मिठाई का डिब्बा देखते ही अंजु और उसकी माँ को समझने में देर न लगी कि आज शुभ समाचार के साथ ही शर्मा जी आये हैं। ‘सुनो, कल वो लोग अंजु से मिलने आ रहे हैं।’ घर में कदम रखते ही वे बोले। सभी खुश थे और अगली सुबह का इंतजार करने लगे।
कल क्या करना है, कैसे करना है रात इसी उधेड़बुन में निकल गई। सुबह हुई और उनके स्वागत की तैयारी शुरू। राजेश और उसके घर वाले घर आये। अंजु से मिले और उन्हें अंजु पसंद भी आ गई। पर अचानक ही वहाँ साहिल आ पहुँचा। ना जाने कैसे उसे इस बात की भनक लग गई। घर में घुसते ही अंजु के विषय में उल-जुलूल बातें करने लगा।
मि. शर्मा डर गये कि कहीं साहिल के कारण इतना अच्छा रिश्ता हाथ से निकल न जाए। कुछ देर हंगामा कर साहिल तो चला गया पर उसके पिता की वो झुकी नजरें, लडख़ड़ाते पैर, अंजु के चेहरे का डर और माँ के चेहरे की चिंता राजेश और उसके परिवार से छुपी न थी।
‘एक बुरी हवा का झोंका था, आया और चला गया। बुरी हवा थी इसलिए अपने साथ यहाँ की अच्छाई न ले जा सकी मि. शर्मा।’ राजेश के पिता के ये शब्द मि. शर्मा के कानों में पड़ते ही मानों उन्हें राजेश को अपना दामाद बनाने के फैसले पर गर्व होने लगा।
राजेश ने भी अंजु की तरफ देखा और मानों नजरों ही नजरों में कह दिया हो कि ‘चिंता न करो मैं सदा तुम्हारे साथ रहूँगा।’
बाहर बारात आ चुकी थी और अंजु भी अपने अतीत से बाहर निकलकर बारात के आने की खुशी से मुस्कुरा रही थी।
बिना किसी विघ्न के अंजु और राजेश का शुभ विवाह संपन्न हुआ। अंजु की विदाई पर शायद उसके पिता न रोये हो, जितना मि. शर्मा के आँसू निकले अपनी बेटी की विदाई पर।
साहिल भी शायद जान चुका था कि अब उसके किसी भी प्रपंच का उसकी आशानुसार परिणाम नहीं निकलने वाला, तो उसने भी इस शुभ विवाह में कोई विघ्न नहीं डाला।
सभी ने साहिल के पिता को दाद दी कि कौन कराता है तलाकशुदा बहू की शादी वो भी बेटी बनाकर।
अंजू के लिए वह रात नई सुबह के समान ही थी।
कीर्ति श्रीवास्तव
कीर्ति श्रीवास्तव
राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय प्रतिष्ठित पत्र- पत्रिकाओं में कविता, गजल, कहानी, लघु कथा, आलेख एवं बाल साहित्य प्रकाशित। आकाशवाणी, दूरदर्शन पर प्रसारित। संपर्क - [email protected]
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