Sunday, September 8, 2024
होमकहानीनीरजा हेमेन्द्र की कहानी - कुछ भी न कहो

नीरजा हेमेन्द्र की कहानी – कुछ भी न कहो

शाम गहराने लगी थी। वह दुपट्टे से सिर को ढ़के हुए तीव्र गति से अपने कदम बढ़ा रही थी। शाम ढलती जा रही है, इसलिए वह शीघ्र घर पहुँचना चाह रही है। घर पहुँच कर दरवाजे की घंटी बजाते कर वह दरवाजा खुलने की प्रतीक्षा करने लगी। वह जानती है कि प्रतिदिन की भाँति आज भी दरवाजा नाज़िया खोलेगी। दरवाजा नाज़िया ने ही खोला। 
      ’’ आज देर कैसे हो गयी अप्पी? ’’ दरवाजा खोलते ही नाजिया ने आतुरता से पूछा। उसके चेहरे पर चिन्ता की रेखाए स्पष्ट थीं। नाजिया की उम्र यद्यपि दसग्यारह वर्ष की ही है। किन्तु समझदारी उसके भीतर अपनी उम्र से अधिक है।
      ’’ क्या बताऊँ ! आज कार्यालय में कुछ अधिकारी गये थे। वे कार्यालय के कागजात् फाईलों की जाँच पड़ताल कर रहे थे। इन सब में कुछ वक्त लग गया।……चाहे जितनी भी तीव्र गति से चलो आॅटो स्टैण्ड तक पैदल आने में भी कुछ समय  लग ही जाता है। ’’ उसने देर से आने का कारण बताते हुए स्थिति स्पष्ट की। 
          वह नाज़िया से बातें कर ही रही थी कि पास के कमरे से अम्मी दीवार के सहारे चलती हुई गयी थीं। आगे बढ़ कर उसने अम्मी को सहारा देकर कमरे में बिछी पलंग पर बैठा दिया। वह अम्मी से आगे कुछ कह पाती कि अम्मी स्वतः उसके प्रश्नों के उत्तर देते हुए धीमें स्वर में कहने लगीं, ’’ सरकारी काम है। कोई अपनी मर्जी की मालिक तो है नही कि जब मन हुआ उठ कर घर चल दे। ’’ उसने अम्मी की बातों का कोई उत्तर नही दिया, तथा शीघ्रता से गुसलखाने में घुस गयी। 
     हाथमुँह धोया, कपड़े बदले तथा दरी बिछा कर नमाज पढ़ने बैठ गयी। वह जानती है कि  अम्मी से अभी बातें करने लगेगी तो बातें खत्म होंगी। घर का सारा काम धरा रह जायेगा। फिर उसे ही अकेले देर रात तक सब कुछ करना पड़ेगा। करना तो सब कुछ उसे अब भी अकेले ही है, किन्तु यदि इसी समय से लग जायेगी तो सभी काम समय से तो हो जाएगें। उसे भी आराम करने के लिए थोड़ा समय मिल जाएगा।
         अम्मी खामोशी से बैठी उसे ही देख रही थीं। अभी अम्मी से कुछ भी बातंे करने की उसकी इच्छा नही है। शरीर थकान से टूट रहा है….किन्तु उसके पास दो घड़ी आराम करने का समय नही है। नमाज खत्म कर वह रसोई की ओर बढ़ चली। शाम ढल चुकी है। चाय रात का खाना बनातेबनाते काफी समय हो जाएगा। सोने से पूर्व उसे सुबह के खाने की भी थोड़ी बहुत तैयारी करनी होती है। जिससे  सुबह के कार्य कर वह समय पर कार्यालय पहुँच सके। इन सबके साथ अम्मी को दूध, दवा आदि भी देना रहता है। आखिर घर के कार्यों को करने का उत्तरदायित्व उसका ही तो है। 
      इस समय बहुत सारा काम करना है उसे। पहले रसोई में जाकर कार्य प्रारम्भ कर दे, तत्पश्चात् बीच में समय निकाल कर अम्मी से दिन भर का उनका हाल भी पूछेगी। सर्वप्रथम चाय बनाकर उसने नाज़िया को आवाज लगा दी थी कि वह अम्मी की चाय बिस्कुट ले जाकर उन्हें दे दे। जिसके पश्चात् वह शाम की अम्मी की दवा दे सके। 
       उसकी भी इच्छा हो रही है कि वह कुछ देर अम्मी के पास बैठ कर बातें करे किन्तु वह जानती है यदि इस समय वह अम्मी के पास बैठ गयी तो अम्मी की बातें शीघ्र समाप्त होंगी। अम्मी भी तो सारा दिन घर में अकेली पड़ी रहती हैं। उन्हें भी तो कोई ऐसा चाहिए जिससे दिन भर का अपना हाल या अपने मन की कुछ कह सकें।  
      अम्मी के लिए सोच कर उसका मन दुखी होने लगा। उसे स्मरण है कुछ माह पूर्व तक अम्मी बिलकुल स्वस्थ थीं। उन दिनों अम्मी सिर्फ पेट की समस्या से परेशान रहती थीं। कभी पेट में दर्द, तो कभी पेट में गैस की शिकायत करती थीं। उनके पेट की समस्या से घर में किसी को तकलीफ होने पाये इसलिए कभी काला नमक, अजवायन, तो कभी गैस दूर करने का कोई चूरन आदि घरेलू उपाय स्वंय कर लेतीं। कुछ देर के लिए आराम मिल जाता तो घर के कार्यों में लग जातीं।
      बहुत अधिक समस्या बढ़ जाती तो मुहल्ले के किसी डाक्टर को बताकर स्वंय अपनी दवा ले आतीं। इसी प्रकार वे अपने दिन काटती रहीं। एक रात अम्मी के पेट में असहनीय दर्द उठा। वह रात भर परेशान रही। वो कराहती रहीं। वह उन्हें सहलाती रही। घर में उस समय उसके नाजिया के अतिरिक्त कोई भी था। अम्मी ने सुबह होने तक प्रतीक्षा कर लेने के लिए कहा। वह कर भी क्या सकती थीरात के समय वह अकेले क्या कर सकती थी? कहाँ लेकर अम्मी को जाती
       सुबह होने की प्रतीक्षा करने के अतिरिक्त हम सब के पास कोई अन्य मार्ग था। रिश्तेदारों की तरफ से टूट चुके हृदय के कारण उसका मन नही हुआ कि पास के पी0सी00 में जाकर अम्मी की अस्वस्थता का हाल किसी को बता देती। अपने सगे भाई नाज़िया के पिता को इतनी रात में घर के बहर जाकर  फोन द्वारा बताने को अम्मी ने मना कर दिया। रात भर अम्मी दर्द से तड़पती रहीं। सुबह होते ही वह और नाजिया अम्मी को लेकर शहर के सरकारी अस्पताल पहुँच गयीं। वहाँ अम्मी की अनेक जाँचें हुईं। 
     नाजिया को अम्मी के पास बैठाकर दिन भर वह अस्पताल में दौड़भाग करती रही। यद्यपि उसने अपने भाई यानि नाज़िया के पिता को दूसरे दिन फोन पर अम्मी की बीमारी की सूचना दे दी थी। किन्तु घर के उत्तरदायित्वों को पूरा कर अस्पताल आतेआते उसे भी समय लग गया। अगले दिन अम्मी की जाँचों की रिपार्ट भी गयी। हम सब के पैरांे तले जमीन खिसक गयी जब डाक्टरों ने बताया कि अम्मी को आँतों का कैंसर हो गया है। 
     हम अम्मी से यह बात छुपाना चाह रहे थे किन्तु कब तक यह बात उनसे छुपी रह पाती? अस्पतालों डाक्टरों के चक्कर लगने जो प्रारम्भ हुए तो अम्मी को यह बात पता चल ही गयी। छः माह हो गये। बीमारी अब सम्भवतः बढ़ चुकी है। अम्मी भी अब चलनेफिरने में असमर्थ होकर बिस्तर पर ही पड़ी रहती हैं। बहुत हुआ तो किसी प्रकार दीवार के सहारे चल कर कुछ देर के लिए दूसरे कमरे तक जाती हैं। 
       अम्मी की बीमारी, अपनी नौकरी की व्यस्तता और तो और नाते रिश्तेदारों की बेरूखी से वह अकेले ही जूझ रही है। पुराने दिन, पुरानी बातें याद कर उसका मन कसैला होने लगता है। इसलिए वह पुरानी बातें याद करना ही नही चाहती। किन्तु उसके चाहने चाहने से क्या होता है? जीवन में ऐसी घटनाएँ घटती रहती हैं जो पुरानी घटनाओं से स्वतः जुड़ जाती हैं। 
     रसोई का काम समाप्त कर नाजिया से खाना खा लने के लिए कह कर वह अम्मी के पास गयी है। अपने कमरे में बैठी नाजिया पढ़ाई कर रही थी। वह उठ कर रसोई में खाना लेने चली गयी। अम्मी को दूध दवा देने के पश्चात् वह उनके पास बैठ गयी। उनकी तबीयत का हाल पूछा। वह जानती है कि प्रतिदिन की भाँति आज भी अम्मी यही कहेंगी कि दवा से कोई फायदा नही है। किन्तु वह और कर भी क्या सकती है
    डाक्टरों ने जो दवा बताई है वह उन्हें दी जाती है। वह दवा, दुआ और अम्मी की सेवा के अतिरिक्त और क्या कर सकती है? अम्मी को दवा देकर उन्हें बिस्तर पर लिटा कर वह अपने कमरे में गयी। इस छोटेसे किराये के मकान में दो ही कमरे है। सामने का एक कमरा कुछ है जिसके आधे हिस्से में बैठक है, आधे हिस्से में अम्मी की चारपाई दवाईयों की मेज रखी है। 
      सामने रसोई गुसलखाना है। इस दूसरे कमरे में वह और नाज़िया रहती हैं। कमरे में एक ओर चैड़ा तख्त है जो उसके नाजिया के सोने के लिए पर्याप्त है। खाना खा कर नाजिया वापस कमरे में आकर पढ़ाई कर रही है। पढ़तेपढ़ते वह कुछ देर में सो जायेगी। अम्मी बिस्तर पर लेट गयी हैं। वह जानती है कि वो बिस्तर पर सोने के लिए लेट अवश्य गयी हैं। किन्तु रात भर दर्द से कराहती रहेंगी। कराहतेकराहते यदि कुछ देर के लिए बीच में झपकी गयी तो ठीक है। ये ही अम्मी की नींद भी है। 
          उसकी आँखों में आज नींद नही है। बगल के कमरे से अम्मी के कराहने की आवाजें रोज की अपेक्षा आज कुछ अधिक ही रही हैं। दिनोंदिन उनका स्वास्थ्य गिरता जा रहा है। डाॅक्टरों के अनुसार उनके पास उनके जीवन के कुछ दिन ही शेष हैं। 
   डाॅक्टरों की यह बात वह अब तक स्वीकर नही कर सकी है। अम्मी के बिना अकेले जीवन जीने की कल्पना करते हुए उसे जाने क्यों डर लगता है।  आजकल रात में सोतेसोते उसकी नींद टूट जाती है। व्याकुलता में करवटें बदलतेबदलते सवेरा हो जाता है। 
       आज पुनः उसे नींद नही रही है। चिन्ता से मन बोझिल हो रहा है। जिस दिन अम्मी नही रहीं उस दिन वह क्या करेगी? कैसे रहेगी इस बेगानी दुनिया में अकेले? बिस्तर पर लेटी और बीमार ही सही, अम्मी का होना उसके लिए इस निष्ठुर दुनिया उसके बीच एक मजबूत दीवार की तरह है।  आज उसे अपनी किशोरावस्था के दिन याद रहे हैं। जब वह पन्द्रहसोलह वर्ष की किशोरी थी। कितने बेफिक्र दिन थे वे। 
     उन दिनों अब्बू सरकारी नौकरी में थे। वह दो भाइयों की इकलौती बहन थी। उस समय हम सभी पढ़ रहे थे। अम्मी उन दिनों स्वस्थ तो थी हीं सभी कहते थे वो देखने में आर्कषक भी बहुत थीं। मैं उनके जैसी बिलकुल नही थी। मुझमें अम्मी जैसा आकर्षण नही है। मेरी शक्ल अब्बू पर पड़ी थी। देखने में साधारण शक्ल थी मेरी अब्बू की तरह ही।
      घर के कार्यों को करने के पश्चात् नहाधोकर कर बालों को बाँध कर अम्मी जब भी तैयार हो कर आँगन में बैठती मैं उन्हें देखा करती। उनके चेहरे का बेदाग आकर्षण देख कर सोचा करती मैं भी अम्मी के जैसी क्यों नही हुई? मैं अब्बू पर क्यों पड़ गयी
        बचपन के वे दिन शीघ्रता से व्यतीत होते जा रहे थे। उसे भली प्रकार कितने खूबसूरत दिन थे वे अम्मी, अब्बू, हम सब। उस समय कभीकभी अब्बू के नाते रिश्ते दार भी गाँव से जाते। अब्बू सरकारी नौकरी में थे। यह उनके गाँव के रिश्तेदारों के लिए बड़ी बात थी। वे आते अम्मीअब्बू उनका यथोचित सत्कार करते। जाते समय वे चुपचाप चले जाते उनके चेहरे पर प्रसन्नता नही होती। 
     अम्मी बतातीं कि ािश्तेदारें को अब्बू से पैसों की उम्मीद रहती। इसलिए वे कभी प्रसन्न नही होते। अम्मी बतातीं कि शहर में किसी प्रकार हम लोगों का घर चल जाता था यही बहुत था। किराये के मकान से लेकर हमारी पढा़ईलिखाई आदि पर व्यय करने के पश्चात् कुछ बचता नही था। 
      उसे वो दिन भी कभी नही भूलता जब अब्बू के कार्यालय से एक आदमी आया था। उसने अम्मी को जो सूचना दी उसे सुनकर अम्मी दहाड़ें मार कर रो पड़ी। हम समझ भी पाये कि क्या हुआ? कुछ ही देर में अब्बू का निर्जीव शरीर घर में था। उस समय घर में वह और उसके दो छोटे भाइयों के अतिरिक्त कोई नही था। 
      अम्मी रोरोकर बेहाल थीं। धीरेधीरे पासपड़ोस के कुछ लोग इकट्ठे हो गए। किन्तु इस समय घर में कोई भी ऐसा नही था जो इस अन्तिम संस्कार के समय परिवार का दायित्व वहन कर सके। अब्बू के बड़े दानों भाई इस शहर से लगभग साठ किमी0 दूर पुश्तैनी गाँव में रहते थे।
        अब्बू को इस नौकरी के कारण अपना गाँव छोड़कर शहर में आना पड़ा। उनसे सम्पर्क करने का सीधा कोई जरिया नही था। अम्मी ने एक फोन नम्बर दिया जो गाँव के किसी व्यक्ति का था। वह पी0सी00 गयी और अचानक घटी उस घटना की जानकारी देते हुए उस व्यक्ति से दोनों चाचाओं को बताने का अनुरोध किया। लगभग दो दिनों तक अब्बू को बर्फ की सिल्लियों पर रख कर चाचाओं की राह देखी गयी। 
     दोनों चचा और उनका परिवार अब्बू के दफ़न होने के बाद आये। उस समय वह समझ गयी थी कि ऐसा उन्होंने इसलिए किया था कि कहीं वो समय पर पहुँच गये तो भाई के अन्तिम संस्कार मे पैसे खर्च करने पड़ जायें। रिश्तों के रेशमी डोर को वीभत्स तरीके से तारतार होते उसने किशोरवय में देखा था। रहीसही कसर बाद में दोनों भाईयों ने पूरी कर दी थी। 
     विवाह के पश्चात् अपनीअपनी पत्नियों को ले कर दोनों अलग मकान में रहने चले गए। बहाना यह था कि इस छोेटे से किराये के मकान में इतने लोग नही रह पाएंगे। विवाह योग्य बहन के विवाह का उत्तरदायित्व पूर्ण करना तो दूर उसके बारे में सोचा तक नही। अपने परिवार, अपनी समस्याओं में जो उलझे तो फिर पीछे मुड़ कर देखने का समय कहाँ था उनके पास? कभीकभी अम्मी का हाल पूछ लेते उनका यही उपकार कम नही था उस पर। 
       छोटे भाई रहमान को बेटे की चाहत में पाँच बेटियाँ हो गयीं। महंगाई में बढ़ते जा रहे खर्चों से परेशान होकर उसने अपनी बड़ी पुत्री नाज़िया को उसके पास रख छोड़ा है। नाजिया को पढ़ानेलिखाने से ले कर खानेपीने, कपड़ेलत्ते आदि  सभी आवश्यकताओं का खर्च वह उठाती है। उसकी प्रत्येक आवश्यकता को पूरा करने में उसे जाने क्यों प्रसन्न्ता मिलती है। एक अजीबसा सुकून मिलता है।
      वह भूल जाती है कि नाजिया रहमान की बेटी है। नाजिया से उसका वात्सल्य बढ़ता जा रहा है। घर की बड़ी पुत्री होने के कारण परिस्थितियोंवश असमय उस पर घर की जिम्मेदारियाँ गयीं। छः वर्ष की उम्र से नाज़िया को उसने अपने पास रखा है। नाज़िया भी अपने अम्मीअब्बू से अधिक उससे लगाव रखती है। उसके साथ  माँ बेटीसा रिश्ता कायम हो गया है।
      अब पैसों की तंगी नही है, इसलिए रहमान भी अम्मी का हालचाल पूछने खूब आने लगा है। अम्मी भी उसकी ज़रूरतें पूरी करती रहती हंै। जब भी वह उनसे पैसे मांगता है, अम्मी कहीं कहीं से व्यवस्था कर देती हैं। अम्मी को पेंशन भी मिलती है। रहमान की दृष्टि उनकी पेंशन पर भी रहती हैं। 
     रहमान भी क्या करे? पाँच बेटियों के अतिरिक्त घर के सभी खर्चों को पूरा करतेकरते वह उसकी आर्थिक स्थिति डाँवाडोल हो जाती है। पैसे खत्म हो जाते हैं। अम्मी जानती है कि प्राइवेट नौकरी करके आज के समय में परिवार चलाना सरल नही है। 
        जो भी हो पुराने दिनों की कटु स्मृतियों से मन कसैला हो उठा है। हृदय की व्याकुलता बढ़ने लगी है। अम्मी की बीमारी ने उसे उदिग्न कर रखा है। उसने बगल में लेटी नाज़िया को देखा। बेखबर सो रही है। उसके सिरहाने कोई पुस्तक रखी है, जिसे पढ़तेपढ़ते वह सो गयी है। वह देर तक नाजिया के चेहरे को देखती रही। नाज़िया से कैसा मोहसा होने लगा है उसे। 
    बचपन से उसे अपने पास रखा है। अतः मोहममता स्वाभाविक है। नाज़िया उसके भाई की पुत्री है। उस भाई की जिसने अपने स्वार्थ के लिए माँ बहन की भावनाओं को कभी नही समझा। अब यदि वह उन सबसे जुड़ा है तो मात्र विवशता में। नाजिया में वह अपनी छवि देखती है। एक लड़की की, एक स्त्री की छवि। जिसे इस दुनिया में सम्मान से जीने के लिए कदमकदम पर संघर्ष करना है। इस समय सो रही नाज़िया की मासूमियत उसे अच्छी लगी। उसे देखकर कुछ देर में मन की व्याकुलता कम होने लगी। और जाने कब उसकी आँख लग गयी। 
                जीवन के लिए तिलतिल कर संघर्ष करती अम्मी अन्ततः हार ही गयी। आज उनका इन्तकाल हो गया। दानों भाईयों का परिवार, रिश्तेदार सभी एकत्र हो गए। अम्मी की अन्तिम यात्रा के लिए इस बार रिश्तेदारों का मुँह नही देखना पड़ा। 
      उसने इस मतलब परस्त दुनिया से उम्मीद लगाना छोड़ दिया था। प्रथम बार का धोखा उसे सबक सिखाने के लिए काफी था। हमने अम्मी की अन्तिम यात्रा से ले कर उसके पश्चात् के सभी रस्मोरिवाज को विधिवत् पूर्ण किया। सभी एकत्र मेहमान चले गए। भाई भी अपने परिवार के साथ अपने घर चले गए। इस घर में वह और नाज़िया रह गयी हैं।  ये घर अब अम्मी के बिना काटने दौड़ता है। इस घर में वह नही रहना चाहती। किन्तु अपने मन की यह पीड़ा, यह दुविधा वह किससे कहे? कौन समझेगा उसे
      दोनों भाई अपने परिवारों के साथ अलगअलग रहते हैं। बड़ा भाई सरकारी नौकरी में है। उसकी अर्थिक स्थिति अच्छी है। उसने अपना घर बनवाने के लिए कहीं जमीन ले रखी है। कुछ समय बाद घर बनवाने का वह इरादा रखता है। छोटा भाई विपन्नता की स्थिति में जी रहा है। पाँचपाँच बेटियों की पढा़ईलिखाई विवाह की चिन्ता रहती है उसे। अब्बू ने यहाँ आकर रहने के लिए यही किराये का मकान लिया था। जिसमें अम्मी के साथ वह रहती थी। इस घर को कभी कभी उसे छोड़ना ही पड़ेगा। 
           दिन धीरेधीरे व्यतीत होते जा रहें हैं। उसने अब सोचना छोड़ दिया है। दिन कार्यालय में व्यतीत हो जाता है। नाज़िया भी कालेज चली जाती है। रहमान प्रतिदिन उसका हाल पूछने आता है। बड़ा भाई भी जब अवकाश मिलता है। उससे मिलने जाता है। नाज़िया धीरेधीरे बड़ी हो रही है। उसकी इच्छा है कि वो खूब पढ़े। उच्च शिक्षा प्राप्त कर किसी अच्छी नौकरी में जाये। ले दे कर उसके जीवन का एक ही लक्ष्य एक ही सपना है नाज़िया की अच्छी परवरिश और देखभाल। 
          कभीकभी अकलेपन में वह अपने बारे में सोचती है। क्या है उसके जीने का अर्थ? किसके लिए जी रही है? उसकी मृत्यु के पश्चात् सब कुछ उसके भाईयों का ही तो होगा। उसके पैसे, उसके गहने, उसकी पेन्शन सब कुछ उन भाईयों का होगा जिन्होंने अब्बू की मृत्यु के पश्चात् अपने उत्तरदायित्वों से मुँह मोड़ लिया था। 
       उसे रहमान की दशा देखकर दया आती है। उसका परिवार सचमुच अभावों में रह रहा है। खानेकपड़े से लेकर सभी चीजों का अभाव है। भले ही उसने उसके लिए कुछ किया हो, किन्तु वह रहमान लिए कुछ करना चहती है। वह उसे एक छोटासा घर दिलाना चाहती है। नाज़िया का पूरा उत्त्रदायित्व वह ले लेना चाहती है। उसकी पढ़ईलिखाई, उसका विवाह आदि सब कुछ करेगी। 
      रहमान को उसकी फिक्ऱ करने की आवश्यकता नही है।  शाम को रहमान के आने पर अपने मन की बात उससे बता दी है। यह बात जान कर वह कितना प्रसन्न था मानों उसके सर से बहुत बड़ा पत्थर किसी ने उतार कर रख दिया है। उसकी आँखों में कृतज्ञता के भाव स्पष्ट दिख रहे थे। बोला उसने कुछ भी नही। 
    उसने अपनी नौकरी के आधार पर लोन ले कर उसके लिए एक घर देखना प्रारम्भ कर दिया है। कुछ माह में बनाबनाया एक छोटासा मकान मिल गया। रहमान के परिवार को लेकर वह उसके साथ वह अपने नये घर में रहने गयी है। जब से वह उनके साथ रहने आयी है। रहमान की पत्नी, उसकी बेटियाँ उसका कितना ध्यान रखती हैं। उसको किसी बात की तकलीफ हो इस बात का पूरा ख्याल रखती हैं।
      वह प्रतिमाह मकान का लोन अदा करने के अतिरक्त घर के खर्चों में भी उनकी अर्थिक मदद करने लगी है। रहमान की पत्नी उसको पूरा मान सम्मान का देती है। वह जानती है यह सब भाई के अभावों से जूझते परिवार को पैसे देने के कारण ही सम्भव हुआ है। वरना तो क्या भाई….क्या रिश्तेदार सभी को इस उम्र तक आतेआते उसने देखपरख लिया है। अब भाई के परिवार के साथ ही रहना है। अम्मीअब्बू भी तो उसे अकेला छोड़कर चले गये। ये भी नही सोचा कि उनकी बेटी किसके सहारे इस दुनिया में रहेगी?
             इस वर्ष उसने सैंतालिसवें वर्ष में प्रवेश किया है। उसके जीवन में अनेक ऋतुएँ आयीं और आकर चली गयीं। फरवरी माह के आगमन के साथ पतझड़ की ऋतु प्रारम्भ हो गयी है। यह पतझड़ स्थाई नही है। इसके पश्चात् सूने वृक्षों की टहनियों पर नवपल्लव, नवपुष्प आएंगे। यह तो मात्र ऋतुएँ हैं जो आतीजाती रहेंगी। किन्तु जीवन में कभीकभी ये ऋतुएँ ठहर क्यों जाती हैं? विशेषकर पतझर की ऋतु। 
      उसे याद आने लगे अपने युवावस्था के दिन। जब वह भी अपने विवाह के सपने देखा करती थी। जीवन के इस रूप की तो कल्पना भी नही की थी उसने। वह विवाह योग्य होने लगी और सोचती कि अम्मी उसके भाई उसके विवाह के लिए कहीं कहीं रिश्ता देख रहे होंगे। उसकी हमउम्र अन्य लड़कियों के समान उसका भी विवाह अवश्य होगा। 
     उस उम्र में वह भी साजऋंगार करने लगी थी। आज की भाँति नही कि जैसे जीवन में कुछ शेष ही नही रहा। किसके लिए नये कपड़े साजऋृंगार करे? कौन है उसे देखने वाला? धीरेधीरे उसकी पढ़ाई पूरी हो गयी थी। पढ़ाई के साथसाथ उसने टाइपिंग भी सीख ली थी। वह नौकरी के लिए आवेदन करने लगी थी। 
       उस दिन अम्मी कितनी प्रसन्नत थीं, जब एक सरकारी कार्यालय में उसे टाईपिस्ट की नौकरी मिल गयी थी। पहला वेतन लेकर जब वह घर में आयी थी, उस दिन तो घर में सबकी प्रसन्नता देखते बनती थी। अम्मी के साथ दोनों भाई भी बहुत खुश थे। उन सबको खुश देखकर वह भी वह भी प्रसन्न थी। वह नौकरी करती रही घर वाले प्रसन्न होते रहे। 
         धीरेधीरे दोनों भाइयों का विवाह हो गया। उनके बच्चे हो गए। बच्चे बड़े भी होने लगे। पढ़ने जाने लगे। अम्मी बीमार हुईं। चल बसी। किन्तु उसके जीवन में इतना ही तो नही था। और भी बहुत कुछ था। वसंत तो उसके जीवन में भी आया था। उस समय वह स्नातक की शिक्षा पूरी कर रही थी। मामू की बेटी की शादी में गाँव गयी थी। उसका गाँव कहने भर को गाँव रह गया था। आधुनिक सुखसाधन, और सुविधाएँ वहाँ तक पहुँच चुकी थीं। 
      मामू के घर में शादी का माहौल था। खुशियाँ हर तरफ मुस्करा रही थीं। वही उसे आरिफ मिला था। प्रथम बार का छोटासा परिचय उसे अपनापन के बन्धन में बाँध कर चला गया था। उसके बाद वह उसके घर  आया। वह मामी का दूर का रिश्तेदार था। उससे उसका रिश्ता हो सकता था। आरिफ़ सम्पन्न घर का लड़का था। पढा़लिखा था। 
    अपने भाईयों के साथ उसने व्यवसाय करना प्रारम्भ किया था। व्यवसाय खूब चल गया था। कितनी खुश रहती थी वह उन दिनों। उसकी कल्पनाओं में सोतेजागते हर समय आरिफ़ उसके साथ रहता था। वह जीवन साथी के रूप में आरिफ़ के सपने देखती। आरिफ़ जब भी घर आता अम्मी उसका कितना सत्कार करतीं। 
      इस बीच उसकी नौकरी लग गयी। उसकी कल्पनाओं को पंख लग गए। लगभग छः माह व्यतीत हो गये थे उसे नौकरी करते हुए। वह आरिफ के आने की राह तक रही थी। वह सोचती आरिफ़ को उसकी नौकरी लग जाने के बारे में अब तक ज्ञात ही हो चुका होगा। वह भी कितना प्रसन्न होगा यह जानकर कि उसे सरकारी क्षेत्र में नौकरी मिल गयी है, जिसे पाना आज के प्रत्येक युवा का सपना है। 
     एक दिन सहसा आरिफ़ आया। इस बार अम्मी ने और भी अच्छी तरह से आरिफ़ की खातिरदारी की। उसके खानेपीने से लेकर घूमनेफिरने तक खूब ध्यान रखा। अम्मी ने शायद मेरे मन की बात पढ़ ली थी। उन्हें भी आरिफ़ पसन्द था। उस दिन शाम को उसे छत पर मुझे अकेला देख कर वह भी गया। आरिफ को अपने समीप पा कर मेरा हृदय जोर से धड़कने लगा। धक्….धक्….धक्…. शर्म से उसका चेहरा गर्म गुलाबों सा सुर्ख हो गया था। 
          ’’ शिराज तुम्हंे अपनी बीवी के रूप में पाने के सपने मैं देखा करता था। घर में मैंने कह रखा था कि मैं तुमसे ही निकाह करूँगा। ’’ कहतेकहते आरिफ़ सहसा चुप हो गया। 
        उसकी जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी कि आरिफ़ आखिर कहना क्या चाहता है? उसने देखा आरिफ़ का मुँह कसैला हो रहा था जैसे कोई कड़वी चीज उसने खा रखी हो।
        ’’ तुमने नौकरी करके सही नही किया शिराज। तुम्हे पता है गाँव में तुम्हारी तुम्हारे परिवार की कितनी थू…..थू…. हो रही है। तुम्हारे परिवार को लड़की की कमाई खाने वाला परिवार कहा जा रहा है। ’’ आरिफ ने दूसरी ओर मुँह घुमाते हुए कहा। 
      ’’ बस आरिफ बस! अब कुछ कहो। कुछ भी कहो। ’’ कह कर मैं फूटफूट कर रो पड़ी थी। ओह! इतनी निकृष्ट बात। कोई इस स्तर तक नीचे गिर कर कैसे सोच सकता है
      उसे लगा जैसे वह छत पर नही बल्कि किसी सार्वजनिक स्थान पर नंगी कर दी गयी हो। वह आरिफ का कसैला मुँह देख रही थी। आरिफ़ के चेहरे पर उसने अपने लिए घृणा की जो पराकाष्ठा देखी उसे कभी विस्मृत नही कर सकती। दूसरे दिन आरिफ़ चला गया। उससे कोई बात नही हुयी। 
     इस घृणित सोच से उपजे प्रश्नों के जवाब वह उस समय चाहती थी ही उसे मिला। आज भी वह सोचती है कि शहरों मुस्लिम समाज की लड़कियों का पढ़नालिखना आम बात है। शहरों में हमारे समाज की लड़कियाँ पढ़ने के साथसाथ विभिन्न क्षेत्रों में नौकरियों के साथ ही खेल, कला, साहित्य आदि क्षेत्रों में भी बढ़चढ़ कर आगे रही हैं। गाँवों में क्या अब भी हम आदिम युग में जी रहे हैं? आरिफ भी उसी आदिम समाज सदियों पुरानी की सोच में जी रहा है। विकास की दौड़ में वह कहाँ पर है
        यूँ वसंत तो प्रतिवर्ष आता है। किन्तु उसके जीवन में वसंत बस एक बार ही आया था। पुष्प खिले, प्रेम की बयार बही। फिर जो पतझण आया तो वह उसके जीवन में ठहरसा गया। वह अपने सपने वह नाज़िया में पूरे करना चाहती है। 
     नाज़िया के जीवन में आरिफ़ जैसा वसंत बिलकुल नही चाहती। आरिफ़ जैसी सड़ीगली मानसिकता वालों को पीछे छोड़कर, विकास में बाधक बेड़ियों को तोड़ कर आगे बढ़ने का मार्ग वह नाज़िया को दिखाएगी। पतझण के बाद वसंत अवश्य आयेगा। किन्तु आरिफ़ के साथ गुज़रे वसंत के दिन वह पुनः नाज़िया के जीवन में ही नही, अपने समाज पूरी सृष्टि पर कहीं भी नही देखना चाहती।
RELATED ARTICLES

2 टिप्पणी

  1. अच्छी कहानी है नीरजा हेमेंद्र जी की!
    मजहब चाहे जो भी हो,लेकिन स्त्रियों के लिए लोगों की सोच सहजता से नहीं बदलती।
    जिस तकलीफ को हम लोग से स्वयं भोगते हैं, अपेक्षा करते हैं कि अपने से छोटों को उस तकलीफ से बचा सकें। प्रेम की यही पराकाष्ठा है।
    एक अच्छी कहानी के लिए नीरज जी को बधाइयाँ।

  2. नीरजा बहुत अच्छी कहानी। यथार्थ से जुड़ी परिवार की बलि चढ़ने वाली लड़कियाँ बोझ बन जाती है और फिर वह खुद अपना बोझ ढोते हुए जीती हैं।
    वाकई कितने परिवार पढ़ाई के बाल नौकरी वाली लड़की इस समुदाय में अभी भी स्वीकार नहीं कर पाते हैं।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest