वी एस तीन शून्य दो वर्जिन अटलांटिक का विमान आधा घंटा हवा में ऊभ-चूभकरता, ठंडी सर्द हवाओं से बेपरवाह, नीचे बिछी सफेदी की चादर में हीथ्रो एयरपोर्ट उतर गया और अब मैं सात समंदर पार यूके की धरती पर थी। मायावी सा लोक लग रहा था।
हमारा पुत्र एक वर्ष से यूके में है। महाविद्यालय में ग्रीष्मावकाश हुआ। मेरे पति ने कागज़ी कार्यवाही पूरी की और मेरा लंदन जाने का सपना सच हो गया।हालांकि मैं अपने पति के बिना कहीं जाने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी, लेकिन मनकी अज्ञात गुत्थियों की कौन कहे। कहीं ‘यूनाइटेड किंगडम ‘ देखने की इच्छा गहरे में होगी।
दसघंटे की यह मेरी पहली लंबी हवाई यात्रा थी। ‘विंडो सीट ली। ‘ पहली बार मैंने प्रकृति का इतनासंभार देखा। सिर्फ जयशंकर प्रसाद और नरेश मेहता के साहित्य में पढ़ा था। साक्षात् दर्शन पहली बार किए। गिरगिट की तरह रंग बदलता आकाश कभी धानी, कभी आसमानी।जब क्रू- टीम की सदस्या कुछ खाने को रख जाती तो मजबूरन मुझे खिड़की से ध्यान कुछ देर हटाना पड़ता और पाश्चात्य भोजन कुछ खाना, कुछ ना खाना पड़ता।
आह! बाहर का विस्तार अपूर्व है, अद्भुत है , उसके सामने सारे देश छोटे-छोटे घरौंदे हैं। कलियुग में मनुपुत्र कलपुर्ज़ो का होकर रह गया है। बाहर प्रकृति का विस्तार देखते – देखते कभी मुझे ईश्वर पर प्यार आता तो कभी पूरा शहर लेकर उड़ने वाले उड़न खटोले को देखकर इंसान पर।
खैर दृश्यावली खत्म हुई। मेरा नौनिहाल अपने गंतव्य ‘हीथ्रो‘ पर उतरा।मेरा पुत्र स्वागत को खड़ा था। देखते ही देखते हम पश्चिमी लंदन के हेज़ इलाके में थे।जलपान की औपचारिकता के बाद वह मुझे ‘ साउथहॉल‘ का चक्कर लगवाने ले गया, जो मिन्नी पंजाब ही है। ब्रॉडवे घूमते आपको लुधियाना के चौड़ा बाज़ार की याद आती है। मल्टी-कल्चरल लोग हैं यहां। अलग-अलग वेशभूषा में गुजर जाते लोग देख कर ऐसा लगता है जैसे चित्रपट पर कोई रोचक सी फिल्म चल रही हो।पर ब्रॉडवे है कि सबके लिए सब कुछ उपलब्ध।
पांच सप्ताह की लघु अवधि में मैंने कोई बीसस्टेशन कवर किए पर सबका राष्ट्रीय चरित्र लगभग एक जैसा। पूरा देश स्वच्छ, अनुशासित। यदि आपका पालतू कुत्ता किसी को काटता है तो उसका भारी-भरकम हर्जाना आप भरते हैं और अगर वह फुटपाथ पर गंदगी फैलाता है तो आप इस समय स्वयं इस गंदगी को उठाएंगे बिना दूसरों को असुविधा दिए। ग़लत जगह पार्किंग कीजिए, पचास पाउंड की पर्ची वहां पर लगी मिलेगी। न दें तो जुर्माना बढ़कर दुगना, चौगुना होता जाएगा।
समय देवता यूं तो सबको चलाता है। पढ़ाई के साथ हर विद्यार्थी भी कार्यरत है। काम पर रात को शिफ्ट लगना आम बात है। हम किसी गुजराती नवविवाहिता को मिलने गए। रात के भोजन के उपरांत उसे रातबारह बजे से प्रातः चार बजे वाली शिफ्ट के लिए एक बड़ी ‘फूड पैकिंग फैक्ट्री में उतार दिया।उसने गेट से अपना कार्ड अंदर डाला, खुल जा सिम-सिम… और महिला अंदर। यहां रात भर पब्लिक ट्रांसपोर्ट चलती है। बसें और अंडरग्राउंड ट्यूब तो जैसे लंदन की हृदय गति ही हैं। इन्हीं के साथ लंदन का जनजीवन धड़कता है । भारत से गई एक नवविवाहिता का शिशु छह महीने का हो गया और उसने अपने पिता को नहीं देखा, क्योंकि पिता रात के बारह बजे काम से आता और प्रातः चार बजे फिर काम पर चला जाता और बच्चा पिता के पास जाने से डरता। यहां समयकी कीमत है।
ग्रीनफोर्ड रॉटरी क्लब में मेरा व्याख्यान था। वहां जाने के लिए एक पारिवारिक मित्र को मैंने प्रात: 11:30 का समय दे रखा था, वह 11:30 पर मेरे दरवाज़े पर थे और चलने का आग्रह करने लगे। मैंने कहा 10 मिनट बैठिए चाय, जूस लीजिए 11:40 पर निकल सकेंगे। मैंने अपनी कोई मजबूरी बताई। वे तपाक से बोले – ‘तो फिर आपने मुझे इत्लाह कर दिया होता कि आप 11:40 पर निकल रही हैं। मैं अपने समय की वैसी व्यवस्था करता। 10 मिनट का कितना मोल! मुझे झेंप हो आई। काम पर जाते समय एक महिला की बस छूट गई। बस क्या छूटी उसके पसीने छूट गए और वह वापस घर को हो ली। ‘लेट जाने का कोई फायदा नहीं।’
केनसिंगटन में भारतीय विद्या भवन सेंटर में डॉ.नंद कुमार से भेंट हुई । यह भारतीय संस्कृति का केंद्र है । नेहरू सेंटर की दिव्या माथुर रूस यात्रा पर थीं। भेंट न हो सकी। ‘ इंडिया हाउस‘ ऑल्डविच में एक विशेष सभा में अपनी कविताओं की प्रस्तुति की। वहां भारतीय उच्चायोग के मंत्री समन्वय श्री रजत बागची, हिंदी और संस्कृति अधिकारी राकेश दूबे, और प्रसिद्ध कथा लेखिका व कवयित्री उषा राजे सक्सेना मौजूद थे।
इसी बीच ‘ कैंब्रिज ब्लू बुक‘ में छपे परिचय के आधार पर इंटरनेशनल बायोग्राफिकल सेंटर कैंब्रिज ने वूमैन ऑफ द ईयर – 2006 घोषित कर मेरी यूके यात्रा का स्वाद कुछ बढ़ा दिया।
पांच सप्ताह पता ही नहीं चले और वापसी का दिन आ गया।हीथ्रो एयरपोर्ट पर ‘ डिपार्चर ‘ की तख्ती पर मेरे पुत्र ने भरे मन और भरी आंखों से मेरी ओर देखा और विदा ली। उसके बाद मैं थी, मेरा सामान और सुरक्षा जांच की कारवाहियां। यहां आकर लगता है अकेले आए थे, अकेले ही जाना है; संग तो बीच भर का है।
रात के दस बजे विमान ने गति पकड़ी। एक घंटा तो नीचे यूके ऐसा जगमग दिखता था जैसे सारा देश दीपावली मना रहा हो। बस फिर सब धीरे-धीरे पीछे छूट गया। काले समंदरों का विस्तार दिखने लगा। बीच-बीच में कोई छोटा सा जगमगाता टापू अपनी सत्ता जता जाता।… कब इंदिरा गांधी एयरपोर्ट आ गया, पता ही नहीं चला। बाहर मेरे पति रजनीगंधा के फूल लिए खड़े थे।
डॉ. नीलम सेठी द्वारा – सेवानिवृत्त प्राचार्या, एस .डी.महिला महाविद्यालय ,गुरदासपुर। आमंत्रित फैकैलटी सॉफ्ट स्किल, जी एन यू विश्वविद्यालय फगवाड़ा , जिला कपूरथला।